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लोभ की प्रतिक्रियाए
लोहो उप्पायए लोहं, वरं पेसुण्णमाइणो । कलहं लुंपणं जुद्धं, पडिक्किया इ तस्स य ॥३७॥
और इसकी प्रतिक्रिया ये हैं-लोभ लोभ को, वैर, पैशुन्य आदि को, कलह, लूट और युद्ध को उत्पन्न करता है।
टिप्पण-१. लोभ के उदय में फंसे रहने पर पुनः लोभ रूप कर्म का बंध होता है और लोभी की लोभवृत्ति देखकर अन्य जनों में भी लोभ के भाव उत्पन्न होते हैं। २. लोभी जीव जब परिग्रह को जमा करने लगता है तब उसकी वृत्तियों के कारण परस्पर वैर हो जाता है। वैर-बन्ध के कारण परस्पर अहित के कार्य करते हैं और नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। ३. पैशुन्य अर्थात् चुगली। लोभी की अनैतिकता की चुगली अधिकारी-वर्ग से की जाने लगती है। आदि शब्द से अभ्याख्यान और परपरिवाद को ग्रहण किया है। क्योंकि ये वचन के दोष हैं। ये प्रायः परोक्ष में किये जाते हैं। अभ्याख्यान=दोषारोपण कलंक लगाना। परपरिवाद=निन्दा । लोभी पर ईर्ष्या के कारण दोषारोपण होता है और उसकी निन्दा भी होती है। ४. लोभ के कारण छीना-झपटी होती है। वाक युद्ध होता है। गाली-गलौज और हाथापायी होती है। इसे ही कलह कहते हैं। ५. लोभी के पास परिग्रह होता है। तब उसके अर्थी लोगों की दृष्टि उस पर लगती है। वे उसे लेना चाहता है। परन्तु लोभी सहज में तो देता नहीं है। इसलिये अर्थ पाने के लिये ठगाई, गिरह-कटी, चोरी, लुटाई आदि क्रियाओं का जन्म होता है। यही लुम्पन है। ६. राज्य, धन-वैभव आदि के लिये बड़े-बड़े युद्ध लड़े गये हैं और लड़े भी जाते हैं। अतः लोभ के प्रति एक लोक-प्रतिक्रिया युद्ध भी है। लोभी जब लोभ के वश ये क्रियाएँ करता है, तब वे अनुक्रियाएँ होती हैं और लोभी के प्रति उसके लोभ के कारण ये क्रियाएँ होती हैं, तब ये प्रतिक्रियाएँ होती हैं। ७. वैर मानसिक प्रतिक्रिया है। पैशुन्य आदि वाचिक, कलह