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लौकिक क्या-क्या हानियाँ होती हैं और क्षमा आदि गुणों से इहलौकिक क्याक्या लाभ होते हैं यह भाव बतानेवाले दृष्टान्त । ५. फल-सूचक-कषायों और क्षमा आदि गुणों के पारलौकिक अशुभ और शुभ फल बतलानेवाले दृष्टान्त। ६. जय-दर्शक-साधकों ने जिस प्रकार से क्रोधादि कषायों पर जय पायी है और क्षमादि गुणों को धारण उन विधियों को-आराधना के स्वरूप को बतलानेवाले दृष्टान्त । ७. इन पाँचों भावों को बताने के लिये पूरे जीवन-चरित का वर्णन या घटना-प्रसंग के वर्णन रूप दृष्टान्त होते हैं। जीवन चरित एक या अनेक भव के हो सकते हैं। जैसे-तीर्थंकर भगवन्तों के चरित, चण्डकौशिक का वृत्तान्त आदि। ८. जयाण के बाद का य पादपूर्ति के लिये है और णं अव्यय वाक्यालंकार भी। ९. चरियाई के बाद के. च से जीवन-प्रसंग, घटना-प्रसंग आदि गृहीत होते हैं। १०. ये दृष्टान्त गद्य, पद्य और गीति रूप में हो सकते हैं । गद्य के अनेक भेद-कथा, कहानी, उपन्यास, जीवनकथा, आत्मकथा आदि। पद्य के प्रमुख तीन भेद-महाकाव्य, खण्डकाव्य और प्रसंगकाव्य । गीति के भी कई भेद-रास, चौपाई, ढालें, प्रकीर्णक आदि । ११. यहाँ दृष्टान्त शब्द विषय को स्पष्ट करनेवाले किसी भी घटनाप्रसंग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। फिर भले ही वह इतिहास, पौराणिककथा, जीवन-चरित, चुटकुला, कथा, कहानी, लोककथा आदि कुछ भी हो ।
दृष्टान्त का वाचन आदि करना
वायणं च सई तेसि, सुभावो हिय-कारणं । जेउं पावे किसीकाउं, बल - वीरिय - बड्ढणं ॥३६॥
उन (दृष्टान्तों) का वाचन, स्मरण और सुभाव हितकारक है और (कषाय आदि) पापों को जीतने और कृश करने के लिये बलवीर्य का वर्धक है।
टिप्पण--१. उन दृष्टान्तों के उपयोग के लिये उनका संग्रह और संरक्षण करना आवश्यक है। जैसे कि धन का अर्जन, संग्रह आदि करना ।