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सकते हैं । जैसे- गणधर आचार्य आदि धर्माधिकारी, साधु-साध्वी, श्रावकश्राविकाएँ आदि धर्म-आराधक, राज्य, समाज, जाति आदि के राजा आदि अधिकारी वर्ग, नैतिक आदि उत्तम पुरुष । साधारण जन के भी अनेक प्रकार हो सकते हैं । यथा - सम्पन्न - विपन्न, सुशील - दुःशील, विज्ञ-अज्ञ आदि । ३. उन मनुष्यों के जीवन-प्रसंग के प्रकार काल और विषय से संबन्धित दोदो प्रकार के होते हैं । कालतः दो प्रकार के - नूतन अर्थात् अपने समय में घटित और पुरातन अर्थात् अपने से पहले के समय में घटित । भाव से संबन्धित दो भेद - सद्गुण के प्रेरक और दुर्गुण के निवारक या सद्गुणों का वर्णन करनेवाले और दुर्गुणों का वर्णन करनेवाले । प्रसंगवशात् यहाँ सद्गुण का अर्थ, क्षमा, मार्दव, आर्जव और संतोष लेना चाहिये और दुर्गुण का अर्थ - क्रोध, मान, माया और लोभ । ४. जे वि य हिय-बोहगा अर्थात् जो भी हित- बोधक हों। वे जीवन-प्रसंग एक या अनेक भवों के हो सकते हैं । य शब्द से कल्पित और अर्धकल्पित दृष्टान्तों को भी ग्रहण कर लिया है । बस शर्त इतनी ही है कि वे हित-बोधक होने चाहिये ।
दृष्टान्त के पाँच प्रकार
तस तु भाव वृत्तंत - हाणि - फल- जयाण य । चरियाई च दिट्ठन्ता, पंचविहा हवंति णं ॥ ३५ ॥
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उन ( कषाय और गुणों) के भाव = स्वरूप, वृत्तांत, हानि ( - लाभ ) फल और जय के चरित ( और जीवन - प्रसंग ) रूप दृष्टान्त ( उपर्युक्त ) पाँच प्रकार के होते हैं ।
टिप्पण - १. दृष्टान्तों के पाँच प्रकार - स्वरूपदर्शक, वृत्तांत वर्णन, हानि-लाभ-दर्शक, फल-सूचक और जय-दर्शक । २. स्वरूपदर्शक - कषायों और क्षमादि भावों के स्वरूप को समझानेवाले दृष्टान्त । ३. वृत्तांत वर्णन - क्रोध आदि कषायों और क्षमादि गुणों से जीवन में घटित होनेवाले प्रसंगों को आलेखित करनेवाले दृष्टान्त । ४. हानि-लाभ - दर्शक - कषायों से इह