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की शक्ति प्राप्त होती है । ८. जैसे शासन के आदेश से मनुष्य दुष्कर्म करने से डरता है, वैसे ही जिन - आज्ञा की स्मृति से दुराचार में प्रवृत्ति रुकती हैं । ९. पृथ्वी पर शासन करनेवाले दो महान सत्ताधीश - चक्रवर्ती और वासुदेव । वासुदेव भी अर्धचक्री कहलाते हैं । चक्रवर्ती की आज्ञा छहों खण्ड में बर्तती है । उनकी आज्ञा का उल्लंघन प्रायः कोई भी नहीं करता । वासुदेव भी परम योद्धा होते हैं । अतः वे अपनी आज्ञा का उल्लंघन नहीं होने देते हैं । १०. भगवान जिनेश्वरदेव धर्मचक्रवर्ती हैं । उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने पर भले ही वे दण्ड नहीं देते हैं । किन्तु जीव स्वयं दण्डित होते हैं । ११. धर्मचक्रवर्ती की आज्ञा का उल्लंघन अपनी ही अवहेलना है- जब यह बात समझ में आ जाती है, तब उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने का मन ही नहीं होता हैं और परवशता से आज्ञा का उल्लंघन होता है तो हृदय काँप उठता है । १२. कषाय मानस-प्रजा है। यदि जिन-आज्ञा हृदय में विराजमान हों, तो उसके उल्लंघन की धृष्टता कषाय भी नहीं कर सकते हैं । जिन आज्ञा का क्षेत्र हृदय ही तो है । १३. जिनागम के अर्थ - चिन्तन से आज्ञा का स्मरण होता है ।
कषाय उत्पात करें तो क्या करना ?
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जया उदेइ आवेसो, तया आणं सरेज्ज तं 'हा ! ण मण्णामि धिट्ठोऽहं जिणआणं तु निद्दओ' ॥ ३३ ॥ |
जब आवेश का उदय होता है, तब तू ( भगवान की आज्ञा का स्मरण कर (और चिंतन कर कि - ) 'मैं धृष्ट हूँ-निर्दय हूँ ! हा ! ( इसीलिये तो ) जिनआज्ञा को नहीं मानता हूँ ।'
टिप्पण - १ धृष्ट = निर्लज्ज । निर्लज्ज व्यक्ति हित- शिक्षा को नहीं मानता है । 'मैं भी ऐसा ही निर्लज्ज हूँ । जिनआजा के पालन से जिनदेव को कुछ भी लाभ नहीं है, मुझे ही लाभ है । परन्तु मैं कितना ढीठ, हूँ, जो अपने हित की बात भी नहीं मानता हूँ ?' २. निर्दय = दया - विहीन । दया के दो भेद - परदया और स्वदया । परदया तो प्रसिद्ध ही है । स्वदया अर्थात्