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और पढ़ाने के लिये तो स्मरणशक्ति चाहिये ही। किन्तु सुनाने आदि से ज्ञान की आवृत्ति होती है । अतः वे स्मृति में और दृढ़ होते हैं । ५. स्मृति के दो अर्थ बताये हैं-गुनना और याद रखना। गुनना अर्थात् दृष्टान्तों की आवृत्ति करना। आवृत्ति के तीन प्रकार-किसी को सुनाना, अपने आपको सुनाई दे वैसे बोलते हुए चितारना और मौन रूप से मन में चिन्तन करते हुए चितारना। ६. स्मृति का दूसरा अर्थ है-याद रखना अर्थात् यथाप्रसंग क्रोधादि के जय के लिये दृष्टान्तों को स्मृति में लाना। ७. दृष्टान्तों को भावपूर्वक गुनने से स्मृति इतनी सहज हो जाती है कि उन्हें स्मरण करने के लिये फिर प्रयत्न नहीं करना पड़ता है। और आवेश में प्रयत्न का अवकाश ही कहाँ रहता है, किन्तु आवेश के पूर्व ही याद हो आते हैं और आवेश टंडा पड़ जाता है।
सुभाव का अर्थ
आल्हाओ अरई वुत्ते, सुभाओ इइ बुच्चइ । दिटुंताण पओगो हु, हवइ सुलहो तओ ॥३८॥
घटना-प्रसंग (के जानने) में (उत्पन्न होनेवाले) आह्लाद और अरति को सुभाव कहा जाता है। क्योंकि उससे दृष्टान्तों का प्रयोग सुलभ होता है ।
टिप्पण--१. सद्गुणों के आचरण रूप-प्रेरक रूप दृष्टान्तों से आह्लाद भाव उत्पन्न होता है। गुणों के प्रति प्रमोदभाव की जागृति होती है। २. दुर्गुणों-कषायों के आचरण से होनेवाली दुरवस्था को चित्रित करनेवाले दृष्टान्तों से दुर्गुणों के प्रति अरति-अरुचि उत्पन्न होती है। ३. सद्गुणों के प्रति प्रमोद-रुचि और दुर्गणों के प्रति अरुचि-अप्रमोद दोनों मिलकर सुभाव होता है। ४. दृष्टान्तों से उत्पन्न आह्लाद और अरति भाव जितने तीव्र होंगे, उनका प्रभाव उतना ही अधिक स्थायी होगा। जिससे वे स्मृति में सहज रूप से जम जायेंगे और वे चिरस्थायी होंगे। ५. स्मृति-कोष में जमा