Book Title: Mokkha Purisattho Part 03
Author(s): Umeshmuni
Publisher: Nandacharya Sahitya Samiti

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Page 331
________________ ( ३१४ ) अथवा कषाय के क्षय के लिये अन्य उपाय भी (जिनेश्वरदेव के द्वारा) वर्णित हैं । वे सम्यक्त्व-पराक्रम (उत्तर अ. २९)में हैं। क्योंकि (जो भी) उत्तम साधना है, (वह) उसी (कषाय-क्षय) के लिये हैं । टिप्पण-१. कषाय-क्षय के ये ही उपाय हैं-इतने ही हैं, ऐसा नहीं है। अन्य उपाय आवश्यक-आराधना आदि भी हैं । २. वे श्रमण भगवान् जिनेश्वर महावीरदेव के द्वारा ही वर्णित उपलब्ध हैं । उन उपायों का वर्णन उत्तराध्ययनसूत्र के २९वें अध्ययन में हैं और उन्हीं में से कतिपय उपायों का वर्णन यहाँ किया है। ३. आत्मसाधना कषायक्षय के लिये ही है। जिणम्मि भत्ति च पहेऽणुरत्ति, आणं वहतोऽप्पणि चेव देवं । छित्तुं कसायं सुगुरुं वरेइ, तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मोक्खं ॥७६॥ (भव्य) कषाय का क्षय करने के लिये जिनदेव में भक्ति, जिन-प्रज्ञप्त मार्ग में अनुरक्ति, अपने आत्मा में देव को (देखता हुआ) और आज्ञा को वहन करता हुआ सद्गुरु (के चरण-शरण) को वरण करता है। इसलिये मुनि जल्दी मोक्ष को प्राप्त करता है। टिप्पण-१. जिनदेव की भक्ति ही जिनत्व (=कषाय से मुक्त शुद्ध चैतन्य) की उपलब्धि के लिये ही करणीय है। जिनत्व के लक्ष्य से कषाय दुर्बल होने लगते हैं, जिनदेव की भक्ति से वश में और अपने में जिनदेव के दर्शन से क्षीण होने लगती हैं । २. मोक्ष की रुचि होने पर ही जिन प्रज्ञप्त मार्ग पर अनुरक्ति होती है । मोक्ष की रुचि संवेग है और मार्ग-अनुरक्ति अनुत्तर धर्मश्रद्धा । ३. कषायों के क्षय का लक्ष्य भव-अरुचि रूप निर्वेद से ही संभव होता है। ४. जिनाज्ञा का पालन गुरुदेव के चरण-शरण को स्वीकार करने से सुगमता से होता है

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