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होती है । ५. जीवन-व्यवहार के प्रत्येक कार्यों पर और अपने आप पर सदैव निरीक्षण होता रहना चाहिये ।
निरीक्षण में सावधानी की प्रेरणा
धुत्ता बहू कसाया हि, होंति विविह-रूविणो । | बुद्धि स भमाडिता, जीवं छलंति पावया ॥ ४९ ॥
निश्चय रूप से कषाय बहुत धूर्त होते हैं । वे विविध रूप धारण करते हैं । (वे) पापक बुद्धि और स्मृति को भ्रमित करके, जीव को छलते रहते हैं ।
टिप्पण - १. धूर्त = ठगाई करने में दक्ष । कषाय कोई व्यक्ति नहीं - आत्मा के असद्गुण हैं । वे विविध पर्यायों में परिवर्तित होकर सद्गुण के स्वरूप को धारण कर लेते हैं, जिससे उन्हें पहचानना अति कठिन हो जाता है । इसीलिये उनका व्यवतीकरण करके उन्हें धृर्त कहा गया है । २. बुद्धि और स्मृति कषायों के वशीभूत होकर कुण्ठित हो जाती है । अत: सोचना और याद रखना दोनों विपरीत हो जाते हैं । ३. पापक = अशुभ रूप । कषाय मंद होकर शुभ रूप में परिवर्तित हो जाते हैं । परन्तु वे शुभ फल प्रदान करके भी जीव के लिये पुनः अशुभ ही करते हैं । इसलिये वे पापक ही हैं ।
यथार्थ निरीक्षण की द्विविधता --
अप्पमत्तो सया तम्हा, सरिता तेसि लवखणं । दुविहेण निरिक्खेज्जाऽऽलोयण चितणेहि य ॥५०॥
( कषाय छलते हैं) इसकारण सदा अप्रमत्त होकर उनके लक्षण का स्मरण करके आलोकन और चिन्तन के द्वारा निरीक्षण करे ।
टिप्पण – १. निरीक्षण के प्रमुख साधन बुद्धि और स्मृति ही हैं । यदि ये दोनों भ्रमित हों तो वास्तविक निरीक्षण नहीं हो सकता है । इनमें भी