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स्मृति की प्रधानता है। २. स्मृति की विशुद्धि के दो उपाय हैं-अप्रमाद और कषाय के लक्षण की असंदिग्ध याद । ३. आलोकन और चिन्तन ये दोनों कार्य बुद्धि से करने होते हैं । बुद्धि, प्रज्ञा, मति आदि प्रायः एकार्थक हैं । बुद्धि के द्वारा अन्तर्मुख दर्शन आलोकन है और श्रुत के माध्यम से सोचना चिन्तन रूप निरीक्षण है । दोनों प्रकार के निरीक्षण का स्पष्टीकरण
दक्खेण जामिगेणेव, आलोयणं करेऽपणा । कहिं चि केण कम्हत्ति, आगया इइ चितए ॥५१॥
दक्ष यामिक=पहरेदार के (द्वारा किये हुए अवलोकन के) समान अपने द्वारा (अपना) आलोकन करे और किसमें, किसके द्वारा और किस कारण से (ये कषाय) आये हैं—यह (सूत्रानुसार) चिन्तन करे ।
टिप्पण-१. दक्ष प्रामाणिक चौकीदार के उदाहरण से आलोकननिरीक्षण का स्पष्टीकरण किया है । प्रामाणिक चौकीदार की जितनी सूक्ष्म -दृष्टि होती है, उससे अधिक सूक्ष्म दृष्टि से अपने भीतर अपना अवलोकन करना-आलोकन निरीक्षण है । २. जैसे चौकीदार की दृष्टि में स्वामी को हानि पहँचानेवाला कोई भी व्यक्ति छिप नहीं पाता, वैसे ही अपने सूक्ष्म आलोकन से कषाय वृत्ति अंश मात्र भी छिपी न रहे । ३. यहाँ तीन कारकों का उल्लेख किया गया है परन्तु षट्कारकों से ही चिन्तन करना समुचित है। जैसे-कौनसा कषाय है ? किसको आया है ? किसके द्वारा आया है ? किसलिये आया है ? किस कारण से आया है ? और किसमें आया है ? क्रोधकषाय, मुझको, अपने मलिन पर्याय के द्वारा, अपने आपके लिये, अपनी भूल के कारण अपने में आया है—यह आभ्यन्तर षट्कारकों का चिन्तन है । क्रोधकषाय का उदय, किसी बाह्य निमित्त से, कर्म को वेद लेने के लिये, कर्म की स्थिति पूर्ण होने से, कार्मणशरीरगत सत्ता में से आया है--यह पंचकारकों का बाह्यदृष्टि से चिन्तन है। परन्तु प्रमुख अधिकरण,