________________
( १३८ )
मान से हानि के विषय में कुछ शेष बात कहते हैं
माणचायस्स माणो वि, अप्पसत्यो दुहंभरो । ण सो कयावि कायव्वो, अप्प - संति-सुहेसिणा ॥८१॥
मान के परित्याग का मान भी अप्रशस्त और दुःख का पोषक है । इसलिये आत्मशान्ति और आत्मसुख का इच्छुक उसे कभी नहीं करें ।
मानत्याग का मान
मध्यदेश में संघराज्य चल रहा था । प्रभावशाली प्रमुखों के नेतृत्व में राज्य उन्नति करता रहा । सम्प्रति प्रमुख थे - जीवराज | वे अति वृद्ध हो चुके थे । यद्यपि प्रमुख के द्वारा नये प्रमुख की नियुक्ति की अभीतक कोई परम्परा नहीं थी, फिर भी कुछ लोगों ने ऐसा वातावरण बना दिया था कि वर्तमान प्रमुख की विद्यमानता में ही नये प्रमुख का चयन कर दिया जाय । लेकिन प्रमुख ऐसा करने में समर्थ नहीं थे । क्योंकि काफी दल-बंदियाँ हो चुकी थीं ।
प्रमुख पद के उम्मीदवारों के कई नाम आ रहे थे । सूरचन्द्र विज्ञ और नितिज्ञ पुरुष थे । कुछ लोग उनका नाम आगे बढ़ा रहे थे तो कई लोग मुक्तिचन्द्र को । यों आठ-दस नाम आ गये । पत्रकार कौलाहल मचा रहे थे कि प्रमुखपद के लिये आठ-दस जने लड़ रहे हैं । बहुत ही निम्नस्तर का लेखन हो रहा था । उन उम्मीदवारों में एक नाम लघुचन्द्र का भी था । परन्तु वह उम्मीदवारी के चक्कर में था नहीं । मात्र कुछ लोगों ने ही उम्मीदवारों की पंक्ति में उसका नाम लगा दिया । उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था । इसलिये उसने सम्पर्क में आये हुए एक पत्रकार से कहा भी सही - " भाई ! आपने प्रमुखपद के उम्मीदवारों में मेरा भी नाम लगा दिया। उम्मीदवार तो