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"तू नहीं मानता है तो सुनले-अपनी छाती मजबूत करके । तू अपनी रानी के मलकप में रंग-बिरंगे कीड़े के रूप में पैदा होगा।"
यह बात सुनकर राजा की दशा खजूर के पेड़ से गिरे हुए मनुष्य जैसी हो गयी। वह भयभीत-सा क्रन्दन के स्वर में बोला--"भगवन् ! मैं राजा.... मैं राजाऽऽ....मेरी ही महारानी के मल में कीड़े के रूप में पैदा होऊँगा!"
"होनी को कौन रोक सकता है, राजन् !" "मैं आपका भक्त...."
"राजन! अपने हृदय को टटोलो!"
राजा का मख एकदम श्याम हो गया। वह भारी मन से उठ रहा था। उसके हृदय में एक विचार कौंध गया। उसने गुरु के समक्ष ही अपने मंत्री से कहा-“मंत्रीजी! आपने सब बात सुन ही ली है । मैं आप से एक निवेदन करना चाहता हूँ। बोलो, जो मैं कहूँगा वह करोगे !"
“कहिये राजन् ! मुझसे शक्य होगा वह मैं अवश्य करूँगा।" मंत्री ने राजा को आश्वस्त करते हुए कहा
राजा कह रहा था--"मंत्रीवर्य ! गुरुदेव ज्ञानी हैं। उनके वचन अन्यथा नहीं हो सकते हैं। मरकर कुछ समय बाद मुझे मलकूप में कीड़े के रूप में पैदा होना ही पड़ेगा। किन्तु आप एक काम करना। मुझे पैदा होते ही मरवा डालना, जिससे मैं उस पाप-योनि से मुक्त हो जाऊँ। मझे वचन दो, मंत्रीजी !" मंत्री ने वचन दिया।
यथासमय राजा की मृत्यु हुई। उस मलकूप के आसपास सैनिकों को नियुक्त कर दया गया। कुछ घण्टों बाद उस मलकूप में एक रंग-बिरंगा कीड़ा प्रकट हुआ। मंत्री के आदेशानुसार सैनिकों ने उस कीड़े को मारने का प्रयत्न किया। किन्तु वह कीड़ा कहीं छिप गया। अति प्रयत्न करने पर भी वह पकड़ में नहीं आया। सैनिक हैरान हो गये। मंत्री भी वहाँ खड़ाखड़ा थक गया।