________________
( १७५ )
गुणों में अग्रजा है-ज्येष्ठा है। ६. इस पश्यना से कषायों में दुर्बलता अवश्य आती है।
५. अनुपादेयता-पश्यना-द्वार
प्रश्न-उपादेयता अर्थात ग्रहण करने योग्य रूप भाव । हेयत्व के कथन से अनपादेयत्व के भाव ग्रहण हो जाते हैं या हेयत्व और अनुपादेयत्व शब्द पर्यायवाची हैं। फिर दोनों पश्यनाओं को भिन्न क्यों कहा?
उत्तर-यद्यपि ये दोनों शब्द पर्यायवाची रूप में प्रयुक्त होते हैं, फिर भी सूक्ष्म-दष्टि से देखने पर दोनों के अर्थ में कुछ भिन्नता प्रतीत होगी। हेयत्व शब्द त्यागभाव का सूचक है और अनुपादेयत्व शब्द अग्राह्यभाव का। अतः कषायों के प्रति तुच्छता और त्यागभाव जगाने के लिये हेयत्वपश्यना का और कषायों में ग्राह्य बुद्धि और उपकारी बद्धि छुड़ाने के लिये अनुपादेयत्व-पश्यना का विधान है। इस प्रकार ये परस्पर पूरक हैं । हेयत्वबुद्धि होने पर ही अनुपादेयत्व बुद्धि होती है और फिर वह हेयत्व बुद्धि से उत्पन्न वृत्ति को कार्यक्षम बनाने में सहयोगिनी बनती है । अनुपादेयत्व-पश्यना का स्वरूप और उद्देश्य--
'कहिं कत्थ वि ते गेज्झा, तेंहि हु मे हियं हवे' । ताअ बुद्धोइ नासट्ठाऽणुवादेयत्त-पस्सणा ॥११३॥
'किसी समय में किसी स्थान पर वे (कषाय) ग्राह्य हैं। क्योंकि उनसे मेरा हित हो सकता है'-इस बुद्धि का नाश करने के लिये अनुपादेयत्व-पश्यना है।
टिप्पण--१. 'बिना आँखें दिखाये कुछ नहीं होता है' 'मान-सन्मान के बिना जीवन निर्माल्य है' 'कुछ अन्यथा कार्य किये बिना संसार में पेठ