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( २०७ ) टिप्पण-१. कषाय दुर्बल होते हैं, तभी उन्हें वश में किये जा सकते . हैं । इसलिये उन्हें कृश करने के कारण कषाय को वश में करने के लिये भूमिका तैयार करते हैं । २. इस गाथा में वशीकरण के सभी उपायों को कषाय-वशीकरण रूप सामान्य गुण के कारण एक कारण के रूप में माना है तथा पद्यबद्धता भी इसमें एक कारण है।
कषायवशीकरण के उपाय
'दंसणं 'पडिसलीणा, 'इच्छच्चाओ अदीणया । "आणस्सई य दिट्ठता, विरोही-भाव-लोणया ॥५॥
'हिट्ठया गुरु-आणाए, 'कसाय-विवाग-चितणं । एवमाई उवाया-त्ति, कसाय-वस-कारणा॥६॥
दर्शन, प्रतिसंलीनता, इच्छा का त्याग, अदीनता, (जिन-) आज्ञा की स्मृति, दृष्टान्त और (कषाय) के विरोधी भावों में लीनता।
गुरु की आज्ञा में प्रसन्नता, कषाय-विपाक का चिन्तन-ये और इसप्रकार के और कोई भाव कषायों को वश करनेवाले उपाय हैं । .
टिप्पण-१. इन दो गाथाओं में कषाय-वशीकरण के नव उपायों का उल्लेख करके नव द्वारों का उल्लेख किया है और इनके सिवाय और भी कोई उपाय हो सकते हैं यह संकेत किया है। क्योंकि समस्त उपायों का कथन केवली भगवान् और श्रुतकेवली स्थविर भगवान् ही कर सकते हैं। २. दर्शन अर्थात् चित्त लगाकर देखना-निरीक्षण करना । प्रतिसंलीनता अर्थात् कषायों के कारणों से टलना या उन निमित्तों में रहते हुए भी कषायों को उदय में नहीं आने देना । इच्छात्याग अर्थात् किसी भी प्रकार की अंशमात्र भी इच्छा नहीं रखना । अवीणया अर्थात् आत्म-ऐश्वर्य का स्मरण करके