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है। ३. अशुभ भाव के उत्पादन के दो उदाहरण दिये हैं। अशुभ हास्य अर्थात् किसी तुच्छ बताने के लिये की जानेवाली हँसी-तिरस्कार से युक्त उपहास। यह भाव प्रायः मान से ही उत्पन्न होता है। जैसे द्रौपदी ने दुर्योधन का उपहास किया। लोक-व्यवहार में ऐसे हास्य के उदाहरण बहुत मिल सकते हैं। ४. मान क्रोध को भी उत्पन्न करता है। क्योंकि व्यक्ति जरा से अपमान से भी उबल पड़ता है। जैसे संभूतमुनि ने नमुचि के द्वारा अपमान होने के कारण तेजोलेश्या का प्रयोग किया। ५. मान से उपहास उच्च, नीच और मध्यम तीनों स्तर के व्यक्तियों के प्रति और क्रोध पूज्य-अपूज्य सभी के प्रति हो सकता है। मान से इहलौकिक हानि--
तणं माणेण थद्धं तु, चित्त-भावा तणंति हि । माणेण दुहिओ रोगी, सव्व-सुहं पि नस्सइ ॥७३॥
मान से शरीर स्तब्ध तना हुआ रहता है और चित्त में भाव भी अवश्य ही तने हुए रहते हैं। मान से जीव दुःखी और रोगी (भी हो जाता) है और (उससे) सर्व सुख भी नष्ट हो जाता है ।
टिप्पण-१. मान से व्यक्ति अकड़ा रहता है । उस अकड़पन के कारण उसका शरीर तना रहता है । २. चित्त में भावों का तनाव अधिकांशतः मान के कारण ही होता है अर्थात् व्यक्ति को अपनी मानहानि के कारण क्रोध आता है। अपने से विशिष्ट व्यक्तियों के प्रति ईर्ष्या-द्वेष जाग्रत होता है। अभावों के कारण दुश्चिता उत्पन्न होती है और अपने साथियों को आगे बढ़े हुए देखकर प्रतिस्पर्धा के भाव होते हैं । इसप्रकार चित्त में तनाव बना रहता है । ३. पुण्य की कमी के कारण मनुष्य किसी न किसी अपेक्षा से समाज में अपने पिछड़ेपन का अनुभव करता है। अतः वह मन ही मन में दुःखी रहता