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है । पुण्य के सदभाव में भी व्यक्ति प्रायः आतकित रहते हैं। कहीं मेरी मानहानि न हो जाय-इस चिन्ता से वे घिरे रहते हैं । ४. मान से शारीरिक और मानसिक तनाव बने रहने के कारण स्नायु स्तब्ध रहने लगते हैं । जिससे वे स्नायविक और अन्य कई बिमारियों से घिर जाते हैं । ५. मान के कारण जीव अति व्याकुल रहता है । उसे सर्वत्र दुश्मन ही दुश्मन दिखाई देते हैं। उसके पास सुख के साधन होते हुए भी वह उनका सुख नहीं भोग पाता है । इसप्रकार त्रस्त रहने के कारण उसके समस्त सुख विनष्ट हो जाते हैं। यों भी मानी सुख के साधनों को घमण्ड से नष्ट करता रहता है ।
माणेण कुविओ साहू, भमिऊण इओ तओ । गुरुं संघ च छड्डित्ता, महुरो होइ एगगो ॥७४॥
मान से कुपित साधु मधुर मुनि इधर-उधर भ्रमण करके, गुरु और संघ को छोड़कर अकेला हो जाता है ।
टिप्पण-१. इस गाथा में मान से साधु की हानि बतायी गयी है। २. संयम सहयोग से सुख शान्ति-पूर्वक पलता है। ३. मान के कारण क्रोध उत्पन्न होने पर साधु भी भटक जाता है और गुरु और संघ का भी त्याग कर देता है। जिससे संयम में हानि होती है। यह साधु की इहलौकिक हानि है ।
अकेला ही रह लूंगा इंद्रपुर में संघ के प्रमुख मुनि का वर्षावास था। उनके शिष्यों में दो मुनि थे-मधुरमुनि और शशिमुनि। दोनों में कुछ कलह हो गया। शशिमुनि ने मधुरमुनि पर व्रतभंग का दोषारोपण किया । परन्तु दोषारोपण पूर्णतः सिद्ध न हो सका। अतः उन्होंने लोगों में दोष का प्रचार करना शुरू किया ।