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नहीं टिक सकते हैं। इसीलिये यह बात सिद्ध होती है कि लोभ के नष्ट हो जाने पर समस्त चारित्रिक दोष, ज्ञान के दोष और विघ्नजनित दोष नष्ट हो जाते हैं और जीव सर्वज्ञ-सर्वदृष्टा बन जाता है।
( ५ ) कसाय-स्वरूप-चिन्तन का फल बताया जाता है
सत्तु-रण्णो बलं मम्म, ण णायं ताव सो बली । एवं जाव कसाओ णो, गाओ तावेव सो बली ॥४१॥
जैसे शत्रु राजा का बल और मर्म-दुर्बल स्थान का ज्ञात नहीं होता है, तभी तक वह बली (प्रतीत होता) है। वैसे ही जबतक (हमें) कसाय (का स्वरूप) ज्ञात न हो, तभीतक वह बली है।
टिप्पण-'मर्म' शब्द का अर्थ है-रहस्य-गुप्त बात और दुर्बल स्थान। यहाँ दोनों अर्थ ग्राह्य हैं। कषाय-स्वरूप-चिन्तन से उसकी रहस्यमयता नष्ट हो जाती है और उसके कमजोर पक्ष का भी ज्ञान हो जाता है।
सत्तणो मम्म-विण्णाणे, तेणंतु सुलहो रणो । तहा मम्मे कसायाणं, गाए जुमिज्ज निभओ ॥४२॥
(जैसे) शत्रुओं का मर्म विशेष रूप से जान लेने पर उसके साथ लड़ना सुलभ (हो जाता) है। वैसे ही कषायों का मर्म जान लेने पर (उनके साथ) निर्भय होकर लड़ा जा सकता है अथवा लड़ो।
तस्स सरूव-चिताए, रहस्सं तस्स णज्जइ । तेणं खिज्जइ सो भीओ, कंपइ होइ दुब्बलो ॥४३॥
उसके स्वरूप का चिन्तन करने से उसका रहस्य ज्ञात होता है। इस कारण वह खिन्न होता है। डरता हुआ कांपता है और दुर्बल होता है।