________________
( ४८ )
टिप्पण-१. जब विशिष्ट गुण, पदार्थ आदि पुण्य से जीव को उपलब्ध होते हैं, तब जीव को उनके वैशिष्ट्य का नशा-सा छा जाता है। उसमें वह बौरे-सा व्यवहार करने लगता है। यह उन्माद मान की अनुक्रिया है। २. अनुकूल पदार्थों के अभाव में दुःख उत्पन्न होता है और उनके अस्तित्व में सुख उत्पन्न होता है। उस दुःख में दीन बनकर और सुख में आसक्त होकर मढ़ बन जाना—ये भी मान की अनुक्रियाएँ हैं । ३. मान से स्तब्धता रूप क्रिया होती है और फिर आगे चलकर उन्माद और मुढ़ता दो अनुक्रियाएँ होती हैं । ये मान जनति भी हैं और मान की पोषक भी हैं। इसीको विशेष रूप से बताते हैं
पत्तस्स वत्थुस्स गुणस मसया, वुत्तं मयं लख-महत्य-उच्चया। सा गारवो जाऽजुय-हीणया भवे, पत्तुं महत्तं न करेइ कि मया॥१७॥
प्राप्त वस्तु और गुण की उन्मत्तता को मद कहा गया है और उपलब्ध महार्थ से अपनी उच्चता के भाव और उसके अभाव से जो हीनता के भाव होते हैं-वे गौरव हैं । महत्त्व को प्राप्त करने के लिये मान के कारण जीव क्या नहीं करता है ?
टिप्पण-१. वस्तु के तीन भेद-सचित, अचित और मिश्र । सचित्त वस्तु अर्थात् हस्ति, अश्व, गौ आदि । अचित्त वस्तु अर्थात् सोना, चाँदी, मणि, माणिक्य, महल आदि । मिश्रवस्तु अर्थात् बाग, बगीचा, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित पत्नी-पुत्र-पुत्री-पौत्र,' दास-दासी आदि । २. गुण के दो भेद- कर्मज और कर्म के क्षयोपशम से लब्ध । शुभकर्मजन्य चार गुण-जाति, कुल, रूप और ऐश्वर्य और क्षयोपशमजन्य चार गुणबल, तप, श्रुत और लाभ । यहाँ 'वस्तु' शब्द से ऐश्वर्य और 'गुण' शब्द शेष सात विशेषताएँ ग्रहण की गयी हैं। ३. इन वस्तुओं और गुणों से उत्पन्न उन्माद रूप अनुक्रिया मद है । उस मद के उसके कारणानुरूप आठ भेद किये हैं । वे क्रमशः इसप्रकार हैं-ऐश्वर्यमद, जातिमद, कुलमद,