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यौवन अठखेलियां कर रहा था। वासना और सौन्दर्य ने उसे मोहक रूप प्रदान कर दिया था। युवतियों के लिये वह आकर्षण का केन्द्र था । अन्ततः उसे कालेज की सबसे अधिक स्मार्ट युवति के प्रेम-पाश में बँधने में जरा भी हिचक नहीं हुई।
___ गुणधीरसिंह को पता नहीं था कि मेरे लघु भ्राता का मन कहीं किसी में उलझ गया है। समाज के उच्चकोटि के श्रेष्ठियों की ओर से उसके सगपन की माँग आ रही थी। भाई भी विवाह-बन्धन में बंधने का आग्रह कर रहे थे। परन्तु वह विवाह टालता जा रहा था । इसीलिये उसने एम.ए. में दूसरी बार कालेज में प्रवेश लिया। उसका उद्देश्य तो प्रेयसी से सम्पर्क बनाये रखने का था। अध्ययन तो उसका एक माध्यम मात्र था। जब लग्न के लिये उसका आग्रह बढ़ने लगा, तब प्रेमिका ने कहा-"तुम मेरे पिता से मिलो।" उसे प्रेमिका का रुख कुछ बदला हुआ-सा लगा।
वह उसके पिता से मिला। उसने वार्ता-प्रसंग में युगवीर से पूछा"क्या तुम्हारे भाई इस विवाह से सम्मत हो सकेंगे?" “सम्भवतः नहीं।" "तो फिर उस घर में तुम्हारा स्थान नहीं रह सकता है।" "हाँ, नहीं रह सकता"-अब युगवीर संशक हो गया। उसने दाव खेला-“सम्भव हैसमाज से भी बहिष्कार हो जाय और पैतृक सम्पत्ति का हिस्सा भी नहीं मिले।" परन्तु बात इससे विपरीत थी। उसकी नगद सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा बैंक में उसीके नाम से जमा था और उसका कर्ता-धर्ता वही था। यदि भाई उसे अन्य सम्पत्ति न दे तो भी उस सम्पत्ति से उसकी आजीविका चल सकती थी। उसकी यह बात सुनकर प्रेमिका का पिता बोला-"तो मैं किस आधार पर अपनी पुत्री का विवाह आपके साथ करूँ ?" वह बोला"मैं इतना समर्थ हैं कि अपनी आजीविका स्वयं कर सकं ।"
- "आप ईसाई बनते हों तो आपकी सभी समस्याएँ हल हो सकती हैं । आपको उच्च स्थान पर सर्विस मिल सकती है। हमारे समाज में आपको सम्मान भी मिल सकता है और एमिली के साथ आपके लग्न की हो सकता है।"