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क्रांतिक्रिया की अनुक्रियाएँ
कडुअंभासए माई, ण उजु के पि मण्णइ । पलोयए करे वक्कं, वक्कं चितइ भासइ ॥२८॥
मायी जीव कट बोलता है, किसी को ऋज नहीं मानता है; वह वक्र देखता और करता है तथा वक्र रूप से चिन्तन करता है और बोलता है।
टिप्पण-१. कटुभाषण, सरलता की अस्वीकृति, वक्र-दर्शन, वक्र-क्रिया, वक्र-चिन्तन और वक्रभाषण-ये क्रान्तिरूपा क्रिया की अनुक्रियाएँ हैं । २. गाथा में अनुक्रियाओं का क्रिया के रूप में उल्लेख किया . है। क्योंकि क्रान्ति में आक्रमक क्रिया की प्रधानता रहती है और वक्रता में विरोध का स्वर भी प्रधान होता है। अतः विरोधी क्रियाएँ ही इस माया की अनुक्रियाएँ हैं । ३. जब वक्रता माया का तीव्र रूप से उदय होता है, तब साधक भी धर्म में क्रान्ति करने के सपने देखता है। उस समय उसका व्यवहार भी ऐसा ही हो जाता है । माया की प्रतिक्रिया
माया उप्पायए मायं, अविस्सासं अहिं विव । दूरा वज्जंति लोगा तं, पीई माईण दुल्लहा ॥२९॥
माया माया और अविश्वास को उत्पन्न करती है। लोग उस (मायी) को दूर से ही साँप समान त्याग देते हैं । मायी के लिये (जनों में) प्रीति दुर्लभ है ।
टिप्पण-१. 'माया माया को उत्पन्न करती है'-इस वाक्य के दो आशय हैं। पहला अर्थ मायी से सम्बद्ध है और दूसरा लोगों से। २. जब हृदय में माया का उदय होता है, तब छल आदि की प्रवृत्ति होती है