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की है और गुरुदेव की लब्धि ऐसी है कि जितने की हम भोजन-व्यवस्था करते हैं, उससे डेढ़े-दुगुने लोग निबटते हैं..
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उन मुनिराज के मुख-मण्डल पर मधुर मुस्कान की रेखाएँ रस- रास रचाने लगीं । मानों उनका हृदय ही मुख की रंगभूमि पर थिरक रहा था । सब लोग जा रहे थे । वे किसी स्वप्न में खोये-से वहीं खड़े थे । वे देख रहे थे
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'एक छोटा बालक अर्ध-नग्न-सा खड़ा है । उसकी माता भी गयी । पिता भी गये । वह अनाथ हो गया । उसे अपनी अनार्थता का अहसास ही नहीं है । उसके नयन खोज रहे हैं—अपने माता-पिता को । ... उसका अब दुःखी है । वह भटक रहा है । . . एक सन्त आये । उन्हें उस पर करुणा आयी । बालक उनकी दृष्टि से उनकी ओर खिंचा हुआ-सा चला गया । उसने उनकी अंगुली पकड़ ली । वे उसे लेकर वहाँ से चल दिये । ... वे उसे भक्तों के सुपुर्द करने लगे । पर उसने संत को नहीं छोड़ा | भक्तों ने उसकी सारी व्यवस्था की । . . . सन्त ने उसे पढ़ाया-लिखाया | योग्य बनाया और एक दिन अपना शिष्य बना लिया ।... . गुरुजी वात्सल्य मूर्ति थे । वे संयम धनी थे ... चेले की उगती वय थी । यौवन की मस्ती शरीर पर थिरक रही थीं । . बड़ी उम्र की कुमारिकाएँ उसकी ओर आकर्षित होने लगीं । वह भी उनसे हँसने-बोलने लगा... गुरु की दृष्टि सजग थी । उन्होंने चेले को समझाया । परन्तु वह गुरु का उपकार भूलकर एकदम चिढ़कर बोला – 'आप हैं बूढ़े ! आपके पास शंका के सिवाय कुछ नहीं है। मैं किसी से प्रेम से दो शब्द बोल लिया तो क्या गलत रास्ते पर चल पढ़ा ?' गुरु ने गम खाया । ... एक दिन एक भक्त ने गुरु के हाथ में एक पत्र दिया । वह प्रेमपत्र जैसा था । गुरु ने चेले से कहा - 'लड़कियों को पत्र नहीं लिखा करते !' चेला भभक उठा - 'मैंने पत्र लिखे ? लड़कियों को ? कौन कहता है ?' गुरु ने पत्र उसके हाथ में दे दिया । चेला भड़क - यह षड्यंत्र रचा गया है' . मुझे बदनाम करने के लिये लगता है आपको अपने भक्तों के छिन जाने का भय उत्पन्न हो गया है । मैं अब आपके पास नहीं रहूँगा'... उसने बहुत कलह किया और वह महान् उपकारी गुरुदेव को छोड़कर चल पड़ा.
उठा-