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'उस क्षेत्र में गुरुजी का प्रभाव था। नहीं जम सका वह, वहाँ । उसने वह क्षेत्र छोड़ दिया । चेला दूर . . अति दूर आ गया गुरु से । उसे ज्यादा ज्ञान नहीं था, पर उसमें चालाकी विशेष थी । बुद्धि का चक्र तेज चलता रहता । लोग गर्जी भी बहुत और दर्दी भी बहुत । चल पड़े उल्टेसुल्टे मंत्र । भक्तों की संख्या बढ़ने लगी ।. . एक भक्त की पुत्री से मन लग गया । भक्तों को शंका हुई । पुत्री से भेद पाया और वह गुस्से से भड़क उठा । आया उस गुरु के चेले के पास । उसे धमकाया और दूर खदेड़ दिया भक्तों का दल बढ़ रहा - बढ़ता गया... उसने एकान्तर उपवास प्रारंभ किये । तपस्वी बन गया । धाक जम गयी उसकी ! भक्तों ने महिमा गायी । भक्तों से भी तपस्या करवाता । अगड़-बगड़ मंत्र देता । मंत्रों की माया जमी ।... लोग छंद-स्तोत्र सुनने आने लगे । उसने एक स्तोत्र बनाया। उसमें वर्णमाला और बारह खड़ी के अक्षरों पर अनुस्वार लगाकर जोड़ दिये । रम्युँ, गम्र्युं आदि संयुक्ताक्षरों और स्वाहा, नमः, वषट्, फट् हूं आदि जोड़ दिये । . . . .यों तैयार हो गया चमत्कारी स्तोत्र । ... पहले कुछ लोग जुड़ते ।... . गुरुजी भी चले गये थे . . . दूर-दूर तक ख्याति फैली . . . हजारों लोग आने लगे... वह कौन ? मैं ही तो हूँ हनुमान ! एक थे रामभक्त हनुमान, जिन्हें संसार पूजता है और एक मैं गुरुद्रोही हनुमान जिसे ... उनके मुखपर दूधपर जमी मलाई - सी हँसी फैल गयी । वे होठों पर जमी हँसी को जीभ से चाटते हुए सोच रहे थे - ' दुनिया झुकती है, कला हो तो ...
माया के उत्पादक आदि
माण- लोहेहि सा जाया, मुसावाएण पोसिया जणेs अफला कोहं, माया संसार-वड्ढणी ||३२||
वह मान और लोभ के निमित्त से उत्पन्न होती है और मृषावाद से पुष्ट होती है । ( वह ) निष्फल होने पर क्रोध उत्पन्न करती है । ( सचमुच में ) माया संसार-वर्धिनी है ।