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मनुष्य भी नहीं जान सकता है । वह हृदय में इतनी गूढ़ रूप से रहती है । उसकी स्पष्ट रूप से बाहर अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है । वह जीव को अपने को सुख और संरक्षण प्रदान करनेवाली सखी जैसी प्रतीत होती है । ४. जब-जब जीव माया करते हैं, उसके बल से अन्य को अपने चंगुल में फँसे हुए देखते हैं, तब-तब वे आनन्द का अनुभव करते हैं । ५. इस गाथा में माया को सही रूप से पहचानने में बाधक कारणों का उल्लेख किया है । उसे जानने के लिये उसके सौन्दर्य का पर्दा उठाना होगा । उसके आकर्षण का जाल तोड़ना होगा । उसकी आनन्द - प्रदत्ता का मोह हटाना होगा । उसके सख्यभाव के भेद को जानना होगा और उसकी गूढ़ता को भेदना होगा ।
मंत्रों को माया
हनुमान मुनि स्तोत्र - पाठ करके उठे । आज का स्तोत्र पाठ विशेष रूप से था । उनके प्रति लोग श्रद्धा से आपूरित थे । वे सिद्ध महात्मा जो थे । जनसमुदाय उन्हें वंदन कर रहा था । मानों जनसमुद्र में लहरे उठकर गिर रही थीं । वे विशेष अवसरों पर स्तोत्र पाठ करते थे । उस समय जनसैलाब उमड़ पड़ता था । आज भी ऐसा ही अवसर था । अब जन-समुदाय बिखर रहा था ।
उनका स्तोत्र पाठ चमत्कारिक था । सिद्धि प्रदायक था । लोगों की आशा पूरण - कर्ता था । ऐसा लोगों का — भक्तों का मन्तव्य था । वे जहाँ कहीं भी जाते, वहाँ उनके चमत्कार की कहानियाँ फैल जातीं । लोग उन्हें भगवान् मानकर उमड़ पड़ते । आज सिद्धियाँ उनके चरण चूम रही थीं । उनका हृदय गुदगुदा रहा था । वे जाते हुए जन समुदाय को देखकर पुलकित रहे थे ।
एक भक्त कह रहा था--' “वाह! गुरुदेव की महिमा ! साठ हजार लगभग लोग होंगे !' व्यवस्थापक बोल उठा - " साठ हजार ! अरे ! साठ हजार से ज्यादा होंगे । इससे ज्यादा ही हमने भोजन आदि की व्यवस्था