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रूपमद, बलमद, तपमद, श्रुतमद और लाभमद । ४. महार्थ=विशिष्ट भोग और उसके साधन । वे तीन हैं । यथा-ऋद्धि, रस और साता । उनके अस्तित्व में सुखानुभव करते हुए अपनी उच्चता मानना और उनके अभाव में दुःखानुभव करते हुए अपनी तुच्छता मानकर उनके अर्जन के लिये उत्सुक रहना-गौरव है । ऋद्धि गौरव आदि तीन गौरव कहे गये हैं। ५. इसप्रकार ये आठ मद और तीन गौरव मान की अनुक्रिया है । जीव इन्हें अपने महत्त्व का प्रदर्शन करने के लिये करता है । मदों और गौरवों से आविष्ट जीव का व्यवहार विचित्र हो जाता है। महत्त्व पाने के लिये जीव के नाटक
करेइ मायं नमणं पकोवं, परिग्गहं तेण्ण वरेह मोसं । धणव्वयं मोहरियं च लोणं, पत्तुं पसंसं रमए न कि कि?॥१८॥
(मान पाने के लिये मनुष्य) माया, नमन और प्रकोप करता है; परिग्रह, चोरी, मृषावाद, धनव्यय, मौखर्य और मौन का वरण करता है। (मनुष्य) प्रशंसा पाने के लिये क्या-क्या खेल नहीं खेलता है।
टिप्पण-१. मान मनुष्य को विविध प्रकार के नाच नचाता है । २. मान पाने के लिये जीव छल, कपट, दाँव-पेंच आदि के जाल बुनता हैक्रोध से अनेक तूफान खड़े कर देता है। मान पाने के लिये किसी का अपमान और मान के विविध स्वांग रचना-सहज बात है। इसप्रकार मान के लिये जीव कषाय के विविध नाटक करता है । ३. मान पाने के लिये नमस्कार, विनय, सदाचार, शील, व्रत, तप, दान आदि धर्म के विविध रूपों का अभिनय भी किया जा सकता है । ४. मनुष्य विविध कलाएँ सीखता हैं, संग्रहालय बनाता है, काव्य रचनाएँ करता है, विविध वस्तुओं से घर सजाता है, वस्राभूषणों से शरीर को सुसज्जित करता है, स्नो-पावडर से मुंह निखारता है आदि ये परिग्रह के विविध खेल क्यों खेलता है ? --एक मात्र प्रशंसा पाने के लिये ही तो ! झूठी बातें बनाना, हाथ साफ करना, जादू दिखाना, कुश्ती