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30/जैन समाज का वृहद इतिहास
पं. फतहसागर जी मार्तण्ड रहे। भट्टारक चास्कीनि मृइविद्री सहित सैकड़ो धर्म प्रेमियों ने भारत से जाकर भाग लिया। यूरोप में यह अपने दंग का प्रथम पंचकल्याणक था ।
पंचम पट्टाचार्य प्रतिष्ठा
आचार्य अजितसागर जी के आकस्मिक समाधिमरण के पश्चात उनके पट्ट आचार्य के रूप में मुनियों । वर्धमानसागर जी एवं मुनिश्री श्रेयान्स सागर जी ने अपने आपको आचार्य घोषित कर दिया। पारसोला में वर्धमानसागर जी को विशाल जन समूह के समक्ष तथा महासभा, महासमिति, दि. जैन परिषद, विद्वत् परिषद, शास्त्री परिषद एवं दूसरी अन्य संस्थाओं के पदाधिकारियों की उपस्थिति एवं सहमति से पंचम पट्टाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। इसके पूर्व साधु संघ के द्वारा आचार्य श्रेयान्स सागर जी महाराज को भी लुहारिया (राज.) में विशाल जनसमूह के समक्ष पंचम पट्टाचार्य पद पर प्रतिष्ठापित किया जा चुका था। इस तरह एक ही आचार्य के दो पट्टाचार्य बनने की नई परम्परा का जन्म होना इस दशाब्दि की एक नई घटना है। इस घटना से समाज में पर्याप्त प्रतिक्रिया देखी गई।
दक्षिण भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान धर्मस्थल में वहां के धर्माधिकारी श्री वीरेन्द हेगड़े द्वारा आचार्य विद्यानन्द जी के सानिध्य में 4 फरवरी, 82 को भगवान बाहुबली की प्रतिमा की प्रतिष्ठापना संपन्न हुई।
सामाजिक स्थिति
इस प्रकार सन् 1981 से 1990 तक के दस वर्ष जैन समाज के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण रहे। लेकिन पूरा जैन समाज चाहे वह किसी जाति अधवा प्रदेश का हो, दहेज की बीमारी से ग्रसित ही रहा। बड़ी-बड़ी कन्यायें इस बीमारी का शिकार बन रही है। दहेज के अतिरिक्त विवाह के पश्चात् वधुओं का परित्याग किया जाने लगा है और परित्याग के पश्चात् दोनों का विवाह भी समाज को मान्य हो रहा है। इस कारण पारिवारिक जीवन अस्थिर बन रहा है। यही नहीं अहिंसक जैन समाज में बहुये सताई जाती है और कभी-कभी जला दी जाती है। सामाजिक संगठन एकदम पंगु हो गया है और व्यक्ति समाज की परवाह किये बिना अपनी इच्छानुसार कार्य करने का आदि हो रहा है।
अर्थ की दृष्टि से जैन समाज पहले ही अच्छी स्थिति में है। शिक्षा के क्षेत्र में भी वह आगे बढ़ रहा है। जैन युवक प्रशासनिक सेवाओं के अतिरिक्त पुलिस एवं फौज में भी उच्च पदों पर पहुंचने लगे है यह सब उसके विकास के चिन्ह है। जैन धर्म को पहले से अधिक लोग जानने लगे है। भगवान महावीर का 2500 वौँ परिनिर्वाण महोत्सव, धर्मचक्र प्रवर्तन, भगवान बाहुबलि सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह, मंगल कलश प्रवर्तन, आचार्य कुन्दकुन्द द्वि-सहस्राब्दि समारोह के अवसर पर जैन धर्म का परिचय सारे देश में ही नहीं, किन्तु विदेशों में भी पहुंच रहा है।