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28 / जैन समाज का वृष्ठद् इतिहास
सूर्यकीर्ति प्रकरण
श्री कानजी स्वामी का निधन सन् 1981 की प्रमुख घटना रही। उनका व्यक्तित्व समाज में सदैव चर्चा का विषय बना रहा। बम्बई के जसलोक अस्पताल में उनकी मृत्यु को समाज के सभी वर्गों ने अच्छा नहीं माना। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके भक्तों ने उनके व्यक्तित्व को और भी उभारना चाहा और सन् 1984-85 में उनको घातकी खण्ड में होने वाले भावी तीर्थंकर सूर्यकीर्ति के रूप में घोषित कर दिया। इस अप्रत्याशित कार्य में चम्पा बहिन एवं उनके समर्थकों का प्रमुख हाथ रहा। भावी तीर्थंकर घोषित करते ही सोनगढ़ में भावी तीर्थंकर के रूप में सूर्यकीर्ति नाम से कानजी स्वामी की मूर्ति भी प्रतिष्ठापित कर दी गई। समाज को जब इस आगम विरोधी कदम की जानकारी मिली तो चारों ओर से विरोध के स्वर उभर उठे। समाज की सभी अखिल भारतीय संस्थाओं, प्रादेशिक एवं नगर स्तर की संस्थाओं, सभी जैन पत्र-पत्रिकाओं, विद्वानों एवं श्रेष्ठियों ने सोनगढ के कर्णधारों के इस कदम का विरोध किया। समाज के. अति वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित जनों का एक प्रतिनिधिमंडल सोनगढ गया। न्यायालय के दरवाजे खटखटाये गये। समाज में घोर विरोध देखा गया तथा बच्चे-बच्चे तक की जबान पर सूर्यकीर्ति का नाम आने लगा। लेकिन कानजी स्वामी को सूर्यकीर्ति तीर्थंकर के रूप में प्रतिष्ठापित करने का कार्य नहीं रुका। सूर्यकीर्ति प्रकरण को लेकर सोनगढ़ी भी दो धड़ों में बंट गये। एक धड़ा जिसमें गुजराती एवं कानजी स्वामी द्वारा दिगम्बर धर्म में दीक्षित समाज एक तरफ हो गया और सूर्यकीर्ति मूर्ति प्रतिष्ठापना का पक्ष एवं प्रचार करने लगा। दूसरा धडा टोडरमल स्मारक भवन जयपुर का हो गया और स्मारक भवन के पंडिनगण एवं ट्रस्टी सूर्यकीर्ति मूर्ति प्रतिष्ठापना का समाज के घोर विरोध को देखते हुए उनसे अलग हो गए। वे भी मूर्ति प्रतिष्ठापना का विरोध करने लगे। लेकिन कानजी स्वामी दोनों घड़ी के लिये आदर्श बने हुए है। समाज के घोर विरोध के पश्चात् मूर्ति प्रतिष्ठापना का जोश कुछ ठंडा पड़ गया है।
जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति प्रवर्तन
दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर की ओर से 4 जून 1982 को लाल किला मैदान देहली से जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति का प्रवर्तन प्रारम्भ हुआ। इस ज्ञान ज्योति प्रवर्तन का मुख्य उद्देश्य सारे 1. देश में जम्बूद्वीप से संबंधित ज्ञान का प्रचार प्रसार तथा हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाना रहा। यह ज्ञान ज्योति देश के सभी भागों में गई और समाज ने उसका उत्साह से स्वागत किया तथा आर्थिक सहयोग दिया। सन् 1983 में जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति का महाराष्ट्र के सांगली, कोल्हापुर जिलों में प्रवर्तन हुआ। तथा समापन हस्तिनापुर में 28 अप्रेल 1985 को हुआ।
भा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के तत्वावधान में तीर्थ क्षेत्रों की सुरक्षा एवं उनके सर्वांगीण विकास के लिये तीर्थ क्षेत्र सर्वेक्षण योजना का शुभारम्भ 15 सितम्बर सन् 1984 को साहू श्रेयान्स प्रसाद जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। जिसके अंतर्गत एक-एक तीर्थ का पूरा अध्ययन एवं विकास की सम्भावनाओं को क्रियान्वित करना, तीर्थ के इतिहास को ढूंढकर उसे प्रकाशित करना है। दि. जैन महासभा ने भी तीर्थों के विकास के लिये एक-एक तीर्थ को गोद लेकर उसके पूर्ण विकास की योजना पर कार्य चला रखा है।