Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
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हुई. सं० १९८० में भिनाय (मेरवाडा) में वैशाख शुक्ला दशमी को दीक्षा सम्पन्न हुई. जीवन को एक नई दिशा मिली. दीक्षा के पश्चात्, संस्कृत प्राकृत आदि भाषाओं का और व्याकरण, साहित्य, धर्म एवं दर्शन आदि विविध विषयों का अध्ययन किया. सौभाग्य से ऐसे समर्थ विद्वान् गुरुदेव का सान्निध्य प्राप्त हुआ. जो ज्ञान के महत्त्व से भली भांति परिचित थे और जो अपने जीवन में ज्ञान की ज्योति स्वयं प्राप्त कर सके थे. उन्होंने अध्ययन की प्रेरणा दी. समुचित व्यवस्था की. गुरुदेव के देहोत्सर्ग के पश्चात् स्वामी श्रीहजारीमलजी म० की छत्र-छाया में आया. आपने भी गुरु का प्यार दिया और पथप्रदर्शन किया. प्राकृत भाषा के उद्भट विद्वान् प० बेचरदास दोशी को भी अध्यापन के निमित्त बुलाया गया. बंगाल संस्कृत साहित्य परिषद् की न्यायतीर्थ और काव्यतीर्थ आदि परीक्षाएँ उत्तीर्ण की. साहित्यिक जीवन में प्रवेश हुआ. सर्वप्रथम श्रमण भगवान् महावीर की धर्मदेशनाओं का संकलन किया'. जयवाणी आदि ग्रंथों के संपादन का भी सुअवसर मिला. इसके पश्चात् अन्य सन्त कवियों की रचनाओं का अनेक वर्षों तक अन्वेषण करके रायरचना और आसकरण-पदावली का सम्पादन किया. संस्कृत तथा हिन्दी भाषा में अनेक प्रकीर्णक रचनाएँ की हैं जो विभिन्न संग्रहों और पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.
मुनि श्रीमांगीलालजी
आप स्वामी श्रीहजारीमलजी म. के ज्येष्ठ शिष्य थे. आपने ढलती उम्र में स्वामी म. द्वारा वि० सं० १९६४ मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को नौखा ग्राम में दीक्षा ग्रहण की थी. आपका जन्म भाद्रपद शुक्ला दशमी को दादिया (किशनगढ़) में हुआ था. माता का नाम पुष्पादेवी और पिता का नाम हजारीमलजी तातेड था. आपका प्रारम्भ से ही धर्म के प्रति रुझान था. सात्विक भाव का बीजारोपण बचपन से ही हो गया था. परम विदूषी महासती श्रीउमरावकवरजी म० आपकी ही सुपुत्री हैं, जिन्होंने स्वामीजी म० की परम्परा में दीक्षा ग्रहण की है. पत्री की दीक्षा ने आपको संयम-जीवन की ओर मोड़ दिया. आप वृद्ध होते हुए भी तपस्या करते रहे. रसनाविजय के लिए एक उदाहरण स्वरूप सन्त हुए. आपने तीन वर्ष के लगभग ब्यावर में स्थिरवास किया. अंत में स० २०१३ श्रावण कृष्णा दशमी को स्वर्गगमन किया.
तपस्वी श्रीमोहनमुनिजी
आप स्वामी म० के द्वितीय शिष्य हैं. आपका जन्म मेवाड़ के शाहपुरा नगर में हआ था. माता गुलाबबाई और पिता मांगीलालजी पारख थे. स्वामीजी से महामंदिर (जोधपुर) में दीक्षा धारण की थी. दीक्षा के थोड़े समय पश्चात् ही तपश्चरण प्रारम्भ कर दिया था. आज भी आपकी तपश्चर्या का क्रम चलता ही रहता है. उग्र विहारी मुनियों में आप विशेष उल्लेखनीय माने जाते हैं.
श्रीसोहनमुनिजी
आप श्रीमोहनमूनिजी के शिष्य हैं. सांसारिक दृष्टि से आपके सहोदर लघुभ्राता भी हैं. आपने श्रीमोहनमुनिजी से इन्दौर में मार्गशीर्ष नवमी सं० २०१८ में दीक्षा ग्रहण की. अध्ययन और सेवा में आपकी विशेष अभिरुचि है. सब सन्तों की आपके साथ पूरी सद्भावना है कि आप अपने इस उद्देश्य में आगे बढ़ें. आपको भी पूरी लगन है. भविष्य में इसका सुन्दर परिणाम देखने को समाज उत्सुक है.
१. धर्मपथ, जागरण श्रादि
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