Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ममगारधर्मामृतषिणी टीका अ० १६ सुकुमारिकाचरितवर्णनम् २५१ अवसन्ना, अबसन्नविटारिणी, कुशीला कुशीलविहारिणी, संसक्ता, संसक्तविहारिणी, बहुनि वर्षाणि श्रामण्यय पर्यायं पालयति, पालयित्वा अर्धमासिक्या संलेखनया तस्य स्थानस्याऽनालोचिा अप्रतिक्रान्ता कालमासे कालं कृत्वा, ईशाने कल्पेऽन्यत. मस्मिन् विमाने माथुर्यादि वाचनासमये आचार्याणां विमानसंख्याया विस्मरणेन निश्चयाभावादन्यतमस्मिन्नित्युक्तम् , देवगणिकत या उत्पन्ना। तौकासां देवीनां नवपल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता ।। मू. १५ ।। अपना स्थान नियत करती । इस प्रकार (तत्थ विय णं पासत्था पासस्थ विहारी, ओसामा ओमण्णविहारी कुसीलार मंसत्तार बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउचाइ ) वहां उस सुकुमारिका ने पार्श्वस्था पार्थस्थ विहोरिणी, अवमन्ना, अवसन्न विहारिणी,कुशीलो,कुशील विहारिणी, संसक्ता, संसक्त विहारिणी बनकर अनेक वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन किया ( पाउणित्ता अमासियाए) पालन करके वह अर्धमास की संलेख्ना धारण कर ( कालभोत ) अपनी मृत्यु के अवसर ( कालं किच्चा ) पर मरी-सो मरकर ( अणालोइय अपडिक्कता) अपने पापों की अनालोचना करने से वह प्रतिक्रान्त नहीं बन सकने के कारण ( ईसाणे कप्पे ) ईशानकल्प में ( अण्ण यरंसि विमाणंसि ) किसी एक विमान में ( देवगणियत्ताए उववण्णा) देवगणिका के रूप में उत्पन्न हुई। (तत्थेगझ्याणं देवीणं नवपलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थणं सूमालियाए देवीए नव पलिओवभाई ठिइ पण्णत्ता ) वहां किनिक देवियों भारीत (तत्य विथ णं पासत्था पासत्यविहारी ओसण्णा ओसण्णविहारी कुसीलाऽसंसत्ता २ बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ ) त्यां ते सु. મારિકાએ પાર્થરથા, પાર્શ્વસ્થ વિહારિણી, અવસન્ના, અવસન વિહારિણી, કુશીલા, કુશીલ વિહારિણી, સંસકતા, સંસકત વિહારિણી થઈને ઘણાં વર્ષો सुधी श्राम९५ ५ रनु पास यु . ( पाउणित्ता अद्धमासियाए ) पान ४रीने ते ममासिनी समना धारण ४रीने ( कालमासे ) पोताना मृत्यु णे ( कालकिच्चा ) ते भरण पाभी. मने भए पामीन (अणालोइय अपडिकता) પિતાના પાપની આલોચના ન કરવાથી પ્રતિકાંત ન બની શકવાના કારણે તે ( ईसाणे कापे) ४शान ४८५i ( अण्णयर सि विमाणंसि ) 353 विभा. नमा ( देवगणियत्ताए उववण्णा) देवाना ३५i orम पाभी. ( तत्थे गइयाणं देवी णं नवपलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थणं सूमालियाए देवीए नव पलिभोवमाई ठिई पण्णत्ता) त्यां सी तुवामानी स्थिति न पक्ष्यापननी .
For Private and Personal Use Only