Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 822
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org मेनगारधर्मामृतषिणी टी0 श्रु. २ व. १ म० १ कालीदेवावर्णनम् देवानां च देवीनां च ' आहेबच्च' आधिपत्यं स्वामित्वं कुर्वन्तीपालयन्ती यावद् विहरति । एवम्-उक्तप्रकारेण खलु हे गौतम ! काल्या देव्या सा दिव्या देवर्द्धिः ३, लब्धा, प्राप्ता, अभिसमन्वागता। गौतमः पृच्छति-काल्या खलु हे भदन्त ! देव्यास्तत्र ' केवइयं ' कियन्तं देवाण य देवीण य आहेवच्चं जाव विहर इ ) इस प्रकार वह काली देवी अभी अभी उत्पन्न होकर पांच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्त बनी है। पर्याप्तियां ६ होती हैं परन्तु यहां पर जो वे पांच की संख्या में निर्दिष्ट हुई हैं-उसका कारण यह है कि पर्याप्ति के बंधकाल में देवों के आहार, शरीर आदि पर्याप्तियों के समाप्तिकाल की अपेक्षा भाषा और मनः पर्याय का साथ साथ बंध होता है, इसलिये इन दोनों को एक रूप से यहां विवक्षित किया गया है । वे पर्याप्तियां इस प्रकार है- (१) आहारपर्याप्ति (२) शरीर पर्याप्ति (३) इन्द्रियपर्याप्ति (४) श्वासोच्छ्रवासपर्याप्ति (५) भाषा एवं मनः पर्याप्ति। वह काली देवी चार हजार सामानिक देवोंका यावत् और दूसरे अनेक कालावतंसक भवनवासी असुरकुमार देवों का देवियों का आधिपत्य कर रही है। (एवं खलु गोयमा! कालीए देवीए सा दिव्वा देवड़ी ३ लद्धापत्ता अभिसमण्णा गया, આ પ્રમાણે તે કાલી દેવી હમણાં જ ઉત્પન્ન થઈને પાંચ પ્રકારની પર્યાસિઓથી પર્યાપ્ત બની છે. પથતિએ છ હોય છે. પણ અહીં જે પાંચની સંખ્યામાં જ બતાવવામાં આવી છે. તેનું કારણ આ પ્રમાણે છે કે પર્યાપ્તિના બંધકાલમાં દેવના આહાર, શરીર વગેરે પર્યાપ્તિઓના સમાપ્તિકાળની અપેક્ષા ભાષા અને મનઃ પર્યાતિનું એકી સાથે બંધ હોય છે એથી આ બંનેને અહીં એક રૂપમાં જ બતાવવામાં આવી છે. તે પર્યાપ્તિઓ આ પ્રમાણે છે(१) मा २ पति, (२) शरी२ ५ति , (3) ४न्द्रिय पर्याप्ति, (४) श्वास વાસ પર્યાપ્તિ, (૫) ભાષા અને મનઃ પર્યાપ્તિ. તે કાલી દેવી ચાર હજાર સામાનિક દેવે ઉપર યથાવત્ બીજા પણ ઘણું કાલાવતંસક ભવનવાસી અસુર કુમાર દેવ, દેવીઓ ઉપર શાસન કરી રહી છે. ( एवं स्खलु गोयमा ! कालीए देवीए सा दिया देविड्ढी ३ लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया, कालीए गं भवे ! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा अवढा इज्जाई पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता ) For Private and Personal Use Only

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