Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 830
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ तृतीयमध्ययनम् मूलम् - जइ णं भंते ! तइयज्झयणस्स उक्खेवओ, एवं खल जंबू ! रायगिहे णयरे गुणसिलए वेंइए एवं जहेव राई तहेव रयणी वि, णवरं आमलकप्पा नयरी रयणी गाहावई रयणीसिरी भारियां रयणी दारिया सेसं तहेव जाव अंतं काहि ३ । एवं विज्जू वि आमलकप्पा नयरी विज्जुगाहावई विज्जुसिरीभारिया विज्जुदारिया सेसं तहेव । ४ एवं मेहा वि आमलकप्पाए नयरीए मेहे गाहावई मेहसिरी भारिया मेहा दारिया सेसं तव ५ । एवं खलु जंबू ! समणेर्ण जाव संपत्तेर्ण धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ॥ सू० ६ ॥ टीका-' जणं भंते ' इत्यादि । यदि खलु भदन्त । इत्यादि तृतीयाध्ययनस्य उत्क्षेपकः = जम्बूमनादिरूपः मारम्भवाक्यप्रबन्धोऽत्रवाच्यः । सुधर्मास्वामी कथ ॥ तृतीय अध्ययन प्रारंभ ॥ ( जहणं ते! तइयज्झ घणस्स उक्खेवओ) इत्यादि । टीकार्थ :- ( जइणं भंते! तहयज्झयणस्स उक्खेवओ) अब जंबू स्वामी पुनः पूछते हैं कि हे भदन्त ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने द्वितीय अध्ययन का यह पूर्वोक्तरूप से अर्थ निरूपित किया हैं-तो तृतीय अध्ययन का उन्होंने क्या अर्थ प्रतिपादित किया है ? इस तरह से इस तृतीय अध्ययन का जंबू स्वामी का यह प्रश्न आदिरूप वाक्य प्रबन्ध उत्क्षेपक है-प्रारंभक है - इस प्रश्न का उत्तर श्री सुधर्मा स्वामी ત્રીજું અધ્યયન પ્રારંભઃ " जइण भते ! तइयज्झयणस्स उक्खेवओ' इत्यादि - टीडार्थ - ( जइण भते ! तइयज्ज्ञयणस्स उम्खेवओ ) हवे ४ स्वाभी ફરી પૂછે છે કે હે ભદન્ત ! જો શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે ખીજા અધ્યયનના આ પૂર્વોક્ત રૂપે અથ નિરૂપિત કર્યો છે તે ત્રીજા અધ્યયનના તેમણે શે અથ પ્રતિપાહિત કર્યાં છે ? આ પ્રમાણે આ ત્રીજા અધ્યયનના જમ્મૂ સ્વામીના આ પ્રશ્ન વગેરે રૂપ વાકય પ્રમધ ઉત્સેપક છે-પ્રારભ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તર શ્રી સુધર્માવામી આ પ્રમાણે આપે છે કે -- For Private and Personal Use Only

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