Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 843
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाताधर्मकथाजस्त्र साधिकम् अर्द्ध पल्योपमं स्थितिः । शेषं तथैव । एवं खलु निक्षेपकः प्रथमाध्ययनस्य । एवं क्रमात् शक्रा २, सतेरा ३, सौदामनी ४, इन्दा ५, घनविद्युदपि ६ । सर्वा एता धरणस्य-धरणेन्द्रस्य अग्रमहिष्य एव । एतानि षड् अध्ययनानि वेणुदेवस्यापि । ' अविसेसिया' अविशेषितानि=निर्विशेपानि सदृशानि भणितव्यानि । जैसा कथानक पीछे वर्णित किया जा चुका है वैसा ही जानना चाहिये। उसके वर्णन में और इसके वर्णन में केवल अन्तर इतना ही है कि यह धरणेन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में उत्पन्न हुई और इसकी स्थिति १॥ पल्य से कुछ अधिक है। बाकी का इसका वृत्तान्त कालीदेवी के जैसा ही है। इस तरह यह द्वितीयवर्ग के प्रथम अध्ययन का निक्षेपक-उपसंहार-है।-(एवं कमा सक्का, सतेरा, सोयानगी, इंदा, घणविज्जुया वि, सव्वओ एयाओ धरणस्स अग्गमहिसीओ, एवं, एते ६ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसेसिया भाणियव्वा, एवं जाव घोसस्स वि एए चेव । अज्झयणा, एवमेते दाहिणिल्लाणं इंदाणं-चउप्पण्णं अज्झयणा भवंति, सबओ वि वाणारसीए काममहावणे चेहए तइयवग्गस्स णिक्खेवओ ८॥ ___ (तइओ वग्गो समत्तो) इसी क्रम से शका २, सतेरा ३, सौदामनी ४, इन्द्रा ५, घनविद्युत् ६, ये सब देवियां धरणेन्द्र की ही अग्रमहिषियां थीं। इस तरह के ६ अध्ययन वेणुदेव के भी हैं। और इनका વર્ણવેલા કાલી દેવીના કથાનકની જેમજ સમજી લેવું જોઈએ. તેના અને આના વર્ણનમાં તફાવત ફક્ત એટલે જ છે કે આ ધરણેન્દ્રની અગમહિષીના રૂપમાં ઉત્પન્ન થઈ અને આની સ્થિતિ ના પલ્ય કરતાં કંઈક વધારે છે. આનું બાકીનું વર્ણન કાલી દેવી જેવું જ છે. આ પ્રમાણે આ બીજા વર્ગના પહેલા અધ્યયનને નિક્ષેપક ઉપસંહાર છે. ( एवं कमा सक्का सतेरा, सोयामणी, इंदा, घणविज्जुया वि, सव्यो एयाओ धरणस्स, अग्गमहिसीओ एवं एते ६ अज्झयणा वेणुदेवस्स वि अविसे सिया भाणियव्या, एवं जाव घोसस्स वि एए चेव६ अज्झयणा, एवमेते दाहिणिल्लाणं इंदाणं-चउप्पण्णं अज्झयणा भवंति, सव्वाओ वि वाणारसीए काम महावणे चेइए तइयवग्गस्स णिक्खेवओ ।। ८॥ तइओ वग्गो समत्तो) । भनुम प्रमाणे २४ २, सते। 3, सौहामनी ४, ४न्द्र। ५, ઘનવિઘત ૬, આ બધી દેવીઓ ધરણેન્દ્રની જ અગ્રમહિષીઓ હતી. આ પ્રમાણે જ ૬ અધ્યયને વેણુ દેવીનાં પણ છે અને એમનું વર્ણન ધરણેન્દ્રના For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872