Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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'वं खलु जम्बू!' इत्यादि द्वितीयाध्ययनस्य तिक्षेपका उपसंहारः समाप्तिवाक्यप्रबन्धोऽत्र बोध्यः ॥ सू०५ ।। ____ इति प्रथमवर्गस्य द्वितीयाध्ययनं समाप्तम् ॥-१-२ ॥ काली दारिका आर्या होकर शरीर वाकुशिका बनगई थी। इसके बाद जैसी स्थिति काली आर्या की हुई-वहो सब स्थिति इस रात्रि दारिका की भी हुई-इस प्रकार सब संवन्ध यहां पर इसके विषय में लगालेना चाहिये और वह संबन्ध "महाविदेह में उत्पन्न होकर यह समस्त दुःखों का अन्त करेगी “ यहां तक जानना चाहिये । इस प्रकार हे जंबू! यह प्रथमवर्ग के द्वितीय अध्ययन का उपसंहार है ॥ सू०५॥
प्रथमवर्ग का द्वितीय अध्ययन समाप्त ॥ થઈ તેવી જ સ્થિતિ તે રાત્રિદારિકાની પણ થઈ. અહીં આ પ્રમાણે કાલિદારિકાને બધે સંબંધ આના વિષે સમજી લે જોઈએ અને તે સંબંધ “મહાવિદેહમાં ઉત્પન્ન થઈને તે બધા દુઃખને અંત કરશે ” અહીં સુધી સમજ જોઈએ. આ પ્રમાણે છે જબૂ! પ્રથમ વર્ગના બીજા અધ્યયનને આ ઉપસંહાર છે. સૂ. ૫
"प्रथम तुं भी अध्ययन समात"
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