Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 824
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका श्रु. २ व. १ अ० १ काली देवीवर्णनम् ८०५ श्रीसुधर्मास्वामी माह एवं खलु हे जम्बूः ! श्रमणेन यावत् - मोक्षं सम्प्राप्तेन प्रथमस्य वर्गस्य प्रथमाध्ययनस्य अयमर्थः = पूर्वोक्तो भावः प्रज्ञप्तः । त्तिवेमि ' इति ब्रवीमि व्याख्या पूर्ववत् ॥ सू०४ ॥ ॥ धर्मकथानां प्रथमवर्गस्य प्रथमाध्ययनं समाप्तम् ॥ विदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगी और वहीं से सिद्ध होगी। अब सुधर्मा स्वामी श्री जंबू ! स्वामी से कहते हैं कि हे जंबू ! मुक्ति को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर ने प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह पूर्वोक्त अर्थ प्रज्ञप्त किया है । ऐसा मैंने उन्हीं के मुख से सुनकर यह तुमसे कहा है | सूत्र ४ ॥ -: प्रथम वर्ग का प्रथम अध्ययन समाप्त: મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં ઉત્પન્ન થશે અને ત્યાંથી જ સિદ્ધ થશે. હવે સુધર્માં સ્વામી શ્રી જ'બૂ ! સ્વામીને કહે છે કે હું જબૂ! મુક્તિપ્રાપ્ત શ્રમણ ભગવાન મહા વીરે પ્રથમ વર્ગના પ્રથમ અધ્યયનના આ પૂર્વોક્ત રૂપે અથ પ્રજ્ઞપ્ત કર્યાં છે. આવું હું તેમના શ્રી મુખથી સાંભળીને તમને કહી ગયા છું. ॥ સૂત્ર ૪ ૫ " प्रथम वर्गनुं प्रथम अध्ययन समाप्त. " For Private and Personal Use Only

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