Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 784
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० थ २ व. १ अ. १ काली देवीवर्णनम् ६५ 'कालबडिंसगभवणे' कालावतंसकभवने काले कालाख्ये सिंहासने चतस्मृभिः सामानिकसाहस्रीभिः, चतसृभिर्मह तरिकाभिः, सपरिवाराभिस्तिसृभिः बाह्याभ्यन्तरमध्यरूपाभिः परिसाहिं । परिषद्भिः पारिवारिकदेवी रूपाभिः, सप्तभिः ' अणिरहिं ' अनीकैः हयगजस्थपदातिपभगन्धर्वनाटयरूपैः, अत्रायं विवेकःकालवडिसगभवणे कालंसि, सीहासणंसि चउहिं सामागियप्ताहस्तीहिं चाहिं महरियाहिं, सपरिवाराहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवई हिं सोलप्तहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अण्णेहिं बहुए हिंकालवडिंसगभवणवासिहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहिं य सद्धिं संपरिघुडा महयाय जाव विहरइ ) वहां पर श्री महावीर स्वामी का आगमन हुआ। लोगों को जब इनके आगमन की खबर लगी-तब समस्त राजगृह निवासी जन इन का वंदना करने के अभिप्राय से गुणशिलक उद्यान में आये । भगवान् ने धर्मकथा कही-यावत् परिषदने भगवान् की.पर्युपासना की। उस काल में और उस समय में काली नाम की देवी चमरचंपा नाम की राजधानी में रहती थी। इसके भवन का नाम कालावतंसक था। जिप्स सिंहोसन पर यह बैठती थी उसका नाम काल था। यह उस भवन में चार हजार सामानिकों की परिषदो के साथ, चार हजार महतरिकाओं के साथ, अपने २ परिवारवालो तीन हजार पारिवारिक देवियों के साथ, सात अनीकोंके-हय, गज, रथ, पदाति, वृषभ, गंधर्व एवं नाटयरूप सैन्य केकालंसि, सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं महरियाहिं, सपरिवाराहि तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसहिं आयरवावदेवसाहस्सीहि अण्णेहिं बहूएहिं कालबडिंसयभवणवासीहिं असुमकुमारेहि देवेहिं देवी हिं य सद्धिं सपरिवुडा महयाहय जाव विहरइ ) ત્યાં શ્રી મહાવીર સ્વામીનું આગમન થયું. જ્યારે લોકોને તેમના આગમનની જાણ થઈ ત્યારે રાજડના બધા લકે તેમને વંદન કરવાના અભિમાયથી ગુણશિલક ઉદ્યાનમાં આવ્યા. ભગવાને ધર્મકથા કહી સંભળાવી. યાવત્ પરિષદે ભગવાનની પર્થપાસના કરી. તે કાળે અને તે સમયે કાળી નામની દેવી ચમચંચા નામની રાજધાનીમાં રહેતી હતી. તેના ભવનનું નામ કાલા વત સક હતું. જે સિંહાસન ઉપર તે બેસતી હતી તેનું નામ કાળ હતું. તે ભવનમાં તે ચાર હજાર સામાનિકોની પરિષદાની સાથે, ચાર હજાર મહત્તરિ. કાઓની સાથે, પિતપતાના પરિવારવાળી ત્રણ હજાર પારિવારિક દેવીઓની સાથે સાત અનીકે-ઘેડા, હાથી, રથ, પાયદળ, વૃષભ, ગંધર્વ અને નાટય For Private and Personal Use Only

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