Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हाताधर्मकथानक्षत्रे द्वीन्द्रियादिपञ्चेन्द्रियपर्यन्तात्रसाश्चेत्यर्थः, इन्द्रियादिप्राणानां यथासम्भवंधारणात् तेषु प्राणिस्वमस्तीति भावः । तथा-सर्वे ' भूया' भूताः भवन्ति भविष्यन्त्य भूवन्निति भूताः-चतुर्दशभूतग्रामरूपाः, तथा-सर्वे जीवाः जीवन्ति जीविध्यन्त्यजीविषु रिति जीवाः-नारकतिर्यमनुष्यदेवाः, तथा-सर्वे “सत्ता" सत्त्वाः= प्रमाण द्वारा बाधित नहीं हो सकने से पूर्वापर विरोध रहित ही कहा है। "प्राण' शब्द से सूत्रकार ने ब्रस और स्थावर प्रणियों का ग्रहण किया है । क्यों कि १० द्रव्य प्राणों में से इनको अपने २ योग्य प्राणो का सद्भाव पाया जाता है। अतः इनके सद्भाव से ही ये प्राणी कहे जाते हैं । " भवन्ति, भविष्यन्ति, अभूवन "यह भूत शब्द की व्युत्पत्ति है । इसका भाव यही है कि जो वर्तमान में सत्ता विशिष्ट हैं, आगामी काल में सत्ता विशिष्ट रहेंगे एवं भूतकाल में भी जो सत्ता विशिष्ट थे । इस व्युत्पत्ति से सूत्रकार ने यह प्रदर्शित किया हैं कि प्रत्येक जीवादिक पदार्थ किसी भी काल में उत्पाद
और व्यय धर्म विशिष्ट होते हुए भी अपनी २ सत्ता से रहित नहीं होते हैं। क्यों कि द्रव्य का “ उत्पादव्ययध्रौव्यं सत्" उत्पाद, व्यय
और ध्रौव्य ये स्वभाव है । इससे यह बात निश्चित कोटि में आता है कि किसी भी नवीन पदार्थ का उत्पाद नहीं होता है और न सत् पदार्थ का विनाश ही होता है। "सतो विनाशः असतश्चोत्पादोन" " जीवन्ति, जीविष्यन्ति, अजीविषु" यह जीव शब्द की व्युत्पत्ति है । કંઈ કહ્યું છે તે ભૂત ભવિષ્યત અને વર્તમાનકાળમાંથી કોઈ પણ કાળમાં ગમે તે પ્રમાણ દ્વારા બાધિત નહિ હેવા બદલ પૂર્વાપર વિરોધ રહિત જ કહ્યું છે, "प्राण" शण्ट 3 सूत्रारे त्रस भने स्था१२ प्राणीमान अहण थु छे. કેમકે ૧૦ દ્રવ્ય પ્રાણોમાંથી એમનામાં પિતાપિતાને પ્રાણને સદ્ભાવ भने छ. मेथी समना सहभावथी तसा प्राणी वाय छे. “ भवन्ति, भविष्यन्ति, अभूवन् ” मा भूत शनी व्युत्पत्ति छ. मेनी मथ 20 प्रभार છે કે વર્તમાનકાળમાં જેઓ સત્તા વિશિષ્ટ છે, તેઓ ભવિષ્યકાળમાં સત્તા વિશિષ્ટ રહેશે અને ભૂતકાળમાં પણ જેઓ સત્તા વિશિષ્ટ હતા. આ વ્યુત્પત્તિ વડે સૂત્રકારે એ બતાવ્યું છે કે દરેકે દરેક જીવ વગેરે પદાર્થ કઈ પણ કાળમાં ઉત્પાદ અને વ્યયધમ વિશિષ્ટ હોવા છતાંએ પોતપોતાની સત્તાથી રહિત હતા. नथी. भ द्र०यन “ उत्पादव्ययध्रौव्य सत् " उत्पाद, व्यय मने प्रीव्य સ્વભાવ છે. એથી એ વાત ચોક્કસ રીતે સ્પષ્ટ થાય છે કે કઈ પણ નવીન પદાર્થને ઉત્પાદ થતું નથી અને સત્ પદાર્થનો વિનાશ પણ થતું નથી. " सतो विनाशः असतश्चोत्पादो न ” “ जोवन्ति, जीविष्यन्ति, अजीविषु" मा
For Private and Personal Use Only