Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 760
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मैनेगारधर्मामृतषिणी रो० अ० १९ पुण्डरीक कंठरोकचरित्रम् ७४१ अध्युपपन्ना-मूच्छितो गृद्धः प्रथितः अध्युपपन्नः राज्यादिषु सर्वथासक्त इत्यर्थः, ' अदृदुहटवसहे' आतंदुःखार्तवशातः तत्र-आता मनसा दुःखितः, दुःखातः= देहदुःखयुक्तः, वशातः राज्यराष्ट्रान्तः पुराधासक्तेन्द्रियवशेन विषयसुखवियोगसम्भावनया पीडितः आर्तध्यानोपगत इत्यर्थः । 'अकामए ' अकामका=अनिच्छकः-मरणवाञ्छारहितः, 'अवस्सवसे' अपस्ववश: अपगतस्वातन्यः परा. धीनः सन् कालमासे कालं कृत्वा ' अहे सत्तमाए' अधः सप्तम्यां पृथिव्याम् तमस्तमः प्रभाख्ये सप्तमे नरके 'उकोसकालहिइयंसि' उत्कृष्ट कालस्थिति के नरके से भी युक्त हो गये । (तएणं से कंडरीए राया रज्जे य रहे य अंतेउरे य जाव अज्झोववन्ने अट्टदुहवसट्टे अकामए अवस्सवसे कालमासे कालं किच्चा अहे सत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालठ्ठिइयंसि नरयंसी नेरइयत्ताए उववण्णे) इस तरह दुःखित बने हुए वे कंडरीक राजा राज्य राष्ट्र, एवं अन्तपुर में अध्युपपन्न हो गये इस प्रकार राज्यादिकों में सर्वथा आसक्तिभाव से बंधे हुए वे राजा मन से दुःखित होकर, देह के दुःख से एकक्षण अर्तध्यान में पड़ गये। अन्त में वे, ये नहीं चाहते थे कि मेरी मृत्यु हो जावे-तो भी सांसारिक स्थिति से बन्धे हुए होने के कारण या वेदनाओं से पीडित होने के कारण वे स्ववश नहीं थे परतंत्र थे, इसलिये काल अवसरकाल करके मर कर नीचे तमस्तम प्रभा नाम के सातवें नरक में कि जो उत्कृष्ट काल स्थिति प्रमाण है-अर्थात् ३३ सा (तएणं से कंडरीए राया रज्जे य रटे य अंतेउरे य जाव अज्झोववन्ने अदृदुहवसट्टे अकामए अवस्सवसे कालमासे कालं किच्चा अहे सत्तमाए पुढवीए, अक्कोसकालद्विइयंसि नरयसि नेरइयत्ताए उववण्णे) આ પ્રમાણે દુખિત થયેલા તે કંડરીક રાજા રાજ્ય, રાષ્ટ્ર અને રણવાસમાં અયુપપન્ન થઈ ગયા એટલે કે વધારે પડતા આસક્ત થઈ ગયા. આ પ્રમાણે રાજ્ય વગેરેમાં સંપૂર્ણપણે આસક્ત ભાવથી બંધાયેલા તે રાજા મનથી દુઃખિત થઈને, શારીરિક કષ્ટથી એક ક્ષણ માટે પણ મુક્તિ નહિ થવાને કારણે વિષય સુખના વિયોગની સંભાવના બદલ તેમજ રાજ્ય, રાષ્ટ્ર, રણવાસ વગેરેમાં આસક્ત ઈન્દ્રિયેના વશમાં હોવાને કારણે આર્તધ્યાનમાં મગ્ન થઈ ગયા. છેવટે તેઓ મૃત્યુને ઈચ્છતા નહોતા છતાંએ સાંસારિક વાતાવરણમાં બંધાયેલા હોવાને કારણે અથવા વેદનાઓથી પીડિત હોવાને કારણે તેઓ સ્વવશ હતા નહિ, પરવશ–પરતંત્ર હતા, એથી કાળ અવસરે કાળ કરીને,અન્ય પામીને-નીચે તમસ્તમપ્રભા નામના સાતમાં નરકમાં કે જે ઉત્કૃષ્ટ કાલ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872