Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
ममगारधर्मामृतवर्षिणी डी० अ० १६ द्रौपदीचच
३१३
तयोरपि ग्रहणम्, तथा च- ' एवमाचख्युः, एवमाख्यास्यन्ति ' इत्यपि योजनीयम् । एवं सर्वासु क्रियासु योजनीयम् । तथा एवं " भासंति " भाषन्ते सुरनरपरिषदि सर्वजीवानां स्वस्वभाषापरिणामिन्याऽर्धमागध्या भाषया ब्रुवन्ति । तथा - एवं" पण्णवेंति " मज्ञापयन्ति = हेतुदृष्टान्तादिना प्रकर्षेण बोधयन्ति । तथाएवं परूवेंति ' प्ररूपयन्ति ततद्भेदं प्रदश्य प्रकर्षेण निर्णयन्ति ।
(
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ननु सर्वेऽप्यर्हन्तो भगवन्तः - किमाख्यान्तीत्यादिजिज्ञासायामाह -' सब्वेपाणा ' इत्यादि । सर्वे - निरवशेषाः प्राणाः = प्राणिनः पृथिव्यादयः स्थावरा
"
कर परिग्रह रूप से संग्रह करने योग्य, अन्न, पान आदि के निरोध एवं गर्मीसर्दी आदिमें रखने से कभी भी पीडा पहुँचाने योग्य और विषप्र दान एवं शस्त्र के आघात से विनाश करने योग्य नहीं हैं ।
सूत्र में " आइक्वंति - आख्यान्ति " यह वर्तमानकालिक - क्रिया पद अतीत और अनागतकालिक क्रियापद का उपलक्षक है । अतः इस से यह अर्थ प्रतीत होता है कि उन तीर्थंकर प्रभुओं ने वर्तमान में जैसा कहा है वैसा ही उन्हों ने या अन्य भूत कालिक तीर्थंकरों ने भूत काल में भी कहा है एवं आगामी कालमें भी वे वैसा ही कहेंगे । इसी प्रकार "भासंति, पण्णवेंति" इत्यादि क्रियापदों के साथ भी अतीत और अनागत कालिक क्रियादोंका संबंध कर लेना चाहिये। इस कथन से सूत्रकार ने उनके कथन में परस्पर में विरुद्ध अर्थकी प्ररूपणा का अभाव प्रदर्शित किया है जो कुछ उन्हों ने कहा है । वह भूत, भविष्यत और वर्तमान काल में से किसी भी काल में किसी भी
એવું સમજીને પરિગ્રહ રૂપથી સંગ્રહ કરવા ચેાગ્ય, કે અન્ન, પાન વગેરેના નિરોધ અને ગર્મી, ઠંડી વગેરેમાં રાખીને કાઇ પણુ વખતે પીડિત કરવા ચેાગ્ય અને વિષ આપીને તેમજ શસ્રના આઘાતથી વિનાશ કરવા ચાગ્ય નથી.
सूत्रमां " भाइक्खति आख्यान्ति " या वर्तमानावि द्वियायः अतीत તેમજ અનાગત કાલિક ક્રિયાપદનું ઉપલક્ષક છે. એથી એના વડે આ જાતના અર્થની પ્રતીતિ થાય છે કે તે તીર્થંકર પ્રભુએએ વર્તમાનકાળમાં જે પ્રમાણે કહ્યું છે, તે પ્રમાણે જ તેએએ અથવા તેા ખીજા ભૂતકાલિક તીથ કરીએ ભૂતકાળમાં પણ કહ્યું છે અને ભવિષ્યકાળમાં પણ તેઓ તે પ્રમાણે જ કહેશે. આ रीते "भासंति, पण्णवेंति " वगेरे हियापहोनी साथै पशु व्यतीत भने मना ગત કાલિક ક્રિયાપદોના સબંધ જોડવા જોઇએ. આ કથનથી સૂત્રકારે તેમના કથનમાં પરસ્પરમાં વિરૂદ્ધ અર્થની પ્રરૂપણાના અભાવ બતાવ્યા છે. તેમણે જે
४०
For Private and Personal Use Only