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धर्मशास्त्र का इतिहास
एकमत होकर इस यज्ञ में आओ और (कुशों के) आसन पर बैठो। विज्ञ लोगों (पुरोहितों) द्वारा कहे जानेवाले मंत्र तुम्हें (यहाँ ) लायें । ( राजन् ! ) इस आहुति से प्रसन्न होओ। (५) हे यम ! अंगिरसों एवं वैरूपों (के साथ आओ) और आनन्दित होओ। मैं तुम्हारे पिता विवस्वान् का आह्वान करता हूँ; यज्ञ में बिछे हुए कुशासन पर बैठकर (वे स्वयं आनन्दित हों) । (६) अंगिरस्, नवग्व, अथवं एवं भृगु लोग हमारे पितर हैं और सोम से प्रीति रखते हैं। हमें उन श्रद्धास्पदों की सदिच्छा प्राप्त हो ! हमें उनका कल्याणप्रद अनुग्रह भी प्राप्त हो ! (७) जिन मार्गों से हमारे पूर्वज गये उन्हीं प्राचीन मार्गों से शीघ्रता करके जाओ। तुम लोग ( अर्थात् मृत लोग) यम एवं वरुण नामक दो राजाओं को स्वेच्छापूर्वक आनन्द मनाते हुए देखो।" (८) (हे मृत !) उच्चतम स्वर्ग में पितरों, यम एवं अपने इष्टापूर्त के साथ जा मिलो।" अपने पापों को वहीं छोड़कर अपने घर को आओ ! दिव्य ज्योति से परिपूर्ण हो (नवीन) शरीर से जा मिलो ! २१ (९) (हे दुष्टात्माओ ! ) दूर हटो, प्रस्थान करो, इस स्थान (श्मशान) से अलग हट जाओ; पितरों ने उसके (मृत के) लिए यह स्थान (निवास) निर्धारित किया है। यम ने उसको यह विश्रामस्थान दिया है जो जलों, दिवसों एवं रातों से भरा-पूरा है। (१०) (हे मृतात्मा ) ! शीघ्रता करो, अच्छे मार्ग से बढ़ते हुए सरमा की संतान ( यम के) दो कुत्तों से, जिन्हें चार आँखें प्राप्त हैं बचकर बढ़ो। इस प्रकार अपने पितरों के पास पहुँचो जो तुम्हें पहचान लेंगे और जो स्वयम् यम के साथ आनन्दापयोग करते हैं । (११) हे राजा वन ! इसे ( मृतात्मा को ) उन अपने दो कुत्तों से, जो रक्षक हैं, चार-चार आँख वाले हैं, जो पितृलोक के मार्ग की रक्षा करते हैं और मनुष्यों पर दृष्टि रखते हैं, सुरक्षा दो। तुम इसको आनन्द और स्वास्थ्य दो । (१२) यम के दो दूत, जिनके नथुने चौड़े होते हैं, जो अति शक्तिशाली और जिन्हें कठिनाई से संतुष्ट किया जा सकता है, मनुष्यों के बीच में विचरण करते हैं। वे दोनों (दूत) हमें आज वह शुभ जीवन फिर से प्रदान करें जिससे कि हम सूर्य को देख सकें। (१३) (हे पुरोहितो ! यम के लिए सोमरस निकालो, यम को आहुति दो। वह यज्ञ, जिसमें अग्नि देवों तक ले जानेवाला दूत कहा गया है और जो पूर्णरूपेण संनद्ध है, यम के पास पहुँचता है । (१४) ( पुरोहितो ! ) घी मिश्रित आहुतियाँ यम को दो और तब प्रारम्भ करो। वह हमें देवपूजा में लगे रहने दे जिससे हमें लम्बी आयु प्राप्त हो । (१५) यमराज को अत्यन्त मधुर आहुति दो, यह प्रणाम उन ऋषियों को है जो हमसे बहुत पहले उत्पन्न हुए थे और जिन्होंने हमारे लिए मार्ग बनाया । वह बृहत् (बृहत्साम ) तान यज्ञों में और छः बृहत् विस्तारों में बिचरता । त्रिष्टुप, गायत्री आदि छन्द - सभी यम में केन्द्रित हैं । "
ऋक्वन् (गायक) लोग बृहस्पति से संबंधित हैं। अन्य स्थानों पर वे विष्णु, अज-एकपाद एवं सोम से भी सम्बन्धित माने गये हैं । स्वाहा का उच्चारण देवगण को आहुति देते समय तथा स्वधा का उच्चारण पितरों को आहुति देते समय किया जाता है।
१८. वरूप लोग अंगिरसों की उपकोटि में आते हैं।
१९. यह और आगे आनेवाले तीन मंत्र मृत लोगों को सम्बोधित है।
२०. देखिए इस ग्रंथ का खण्ड २, अध्याय ३५, जहाँ इष्टापूर्त की व्याख्या उपस्थित की गयी है। इष्टापूर्त का अर्थ है यज्ञकर्मों (इष्ट) एवं दान- कर्मों (पूर्त) से उत्पन्न समन्वित आध्यात्मिक अथवा पारलौकिक फलोत्पत्ति ।
२१. पितृलोक के आनन्दों की उपलब्धि के लिए मृतात्मा के वायव्य शरीर की कल्पना की गयी है। यह ॠग्वेदीय कल्पना अपूर्व है ।
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