Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 640
________________ धर्मशास्त्रीय ग्रन्यसूची १६३३ उसका काल १५२०-१५८० ई० है । ड० का० पाण्डु० ( सं० २०८, १८८२-८३ ) का नाम अनुकल्प सापिण्ड्य निर्णय है और वहाँ तृतीय कन्या परिणयन के विषय में श्रीधर के सिद्धान्तों का विवेचन है । ड० का० पाण्डु० (१०९, १८९५-९८ ) की तिथि १६४७ (१५९० ई०) है । सापिण्डनिर्णय - नागोजिभट्ट द्वारा । नन्दपण्डित, अनन्तदेव, गोविन्दार्णव, वासुदेवभट्ट के नाम आये हैं । भण्डारकर संग्रह में पाण्डु० की तिथि शक संवत् १७२५ है । साधारणप्रायश्चित्तसंग्रह । साधारणव्रतप्रतिष्ठाप्रयोग — यजुर्वेद के अनुसार । नो० सापिण्डनिर्णय-भट्टोजि द्वारा । ड० का० पाण्डु० (सं० ६२२, १८८३-८४ ) में आरम्भ का अंश यों है- 'अथ सप्तमीपंचमीनिर्णयः । सापिण्डनिर्णय-- रामकृष्ण द्वारा से० प्रा० (संख्या साग्निविधि- अग्निहोत्रियों के अन्त्येष्टि- कृत्यों के नियमों पर । सांख्यायनगृह्यसूत्र - दे० शांखायनगृह्यसूत्र । सांख्यायनगृह्यसंग्रह -- वासुदेव द्वारा । दे० शांखायन ० ( बनारस संस्कृत माला में प्रकाशित ) । साधनचत्रिका --- केशवेन्द्र स्वामी द्वारा । वैष्णव कृत्यों पर । साधनीद्वावशी बर्नेल का तंजौर कैटलाग ( पृ० ११० बी) । ( भाग २, पृ० ६३२) । सापिण्डीमंजरी - नागेश द्वारा । सापिण्डकल्पलता -- (या - लतिका) नीलकण्ठात्मज श्रीपति के पुत्र सदाशिव देव ( उप० आपदेव) द्वारा । २४ या २५ पद्यों में; विवाह के लिए सापिण्ड्य पर । लेखक देवालयपुर का था । इ० का० पाण्डु० ६१३ (१८८४-८३), तिथि शक १७६० । लेखक विट्ठल का शिष्य था । ग्रन्थ में आया है कि सपिण्ड का तात्पर्य है शरीर के कणों से सम्बन्ध । दे० नो० न्यू० (भाग ३, भूमिका पृ० ८-९ एवं पृ० २२२ ) जहाँ श्लोकों की संख्या ३६ कही गयी है। टी० सदाशिव देव के पुत्र रामकृष्ण के पुत्र नारायणदेव द्वारा ( सरस्वती भवन द्वारा १९२७ ई० में प्रका० ) ; वह लेखक का पौत्र एव नागेश का शिष्य था; नरसिंहसप्तर्षि, वीरमित्रोदय सापिण्ड्यप्रदीप, द्वैतनिर्णय का उल्लेख है । सापिष्डधत स्वप्रकाश--- रेवाधर के पुत्र धरणीधर द्वारा । बड़ोदा (१२७८३) । सापिण्डपदीपिका - नागेश द्वारा। इसे सापिण्ड्यमंजरी एवं सपिण्ड्यनिर्णय भी कहा जाता है। सापिण्डवीपिका - ( या सापिण्ड्य निर्णय ) श्रीधर भट्ट द्वारा । भण्डारकर संग्रह । प्रवरनिर्णय का उल्लेख है । सम्भवतः इसी का नि० सि० में उल्लेख है । लेखक कमलाकर का चचेरा पितामह था, अतः Jain Education International ६३७८-८०) । सापिण्डनिर्णय - रामभट्ट द्वारा। बड़ोदा (५०३२) । सापिण्डयनिर्णय - श्रीधरभट्ट द्वारा । व्य० म० द्वारा व० । यह सापिण्ड्यदीपिका ही है। ड० का० पाण्डु ० (१२८, १८९५-९८) । सापिण्डपप्रदीप नागेशकृत । सापिण्ड्यकल्पलतिका की टीका में व० । घरपुरे द्वारा प्रका० । सापिण्डद्यमीमांसा - नि० सि० में व० । सम्भवतः यह श्रीधरकृत सापिण्ड्यदीपिका ही है। सापिष्डधविचार - विश्वेश्वर उप० गागाभट्ट द्वारा (बड़ोदा, १९४७)। सापिण्डयविषय- गोपीनाथ भट्ट द्वारा । सापिण्डपसार---रेवाघर के पुत्र धरणीधर द्वारा ( बड़ोदा, १२७८४) । सापिण्डश्राद्धविधि | सामगव्रतप्रतिष्ठा - रघुनन्दन द्वारा । सामगवृषोत्सर्गतत्त्व - रघु० द्वारा । दे० ऊपर वृषोत्सर्ग तत्त्व | सामगाह्निक-- दे० छन्दोगाह्निक । सामगृह्यपरिशिष्ट- दे० गोभिल गृह्यपरिशिष्ट । सामगृह्यवृत्ति - रुद्रस्कन्द द्वारा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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