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धर्मशास्त्र का इतिहास सामवेदीयवशकर्म-भवदेव द्वारा। दे० कर्मानुष्ठान- सारसंग्रह-राघवभट्ट द्वारा । रघु० के मलमासतत्त्व में पद्धति (प्रक० ७३) जो भवदेवकृत है।
व० । सामवेदीयसंस्कारपद्धति--देवादित्य के पुत्र वीरेश्वर सारसंग्रहदीपिका-रामप्रसाददेव शर्मा द्वारा। द्वारा। नो० न्यू० (भाग ३, पृ० २२१)। लग० सारसंग्रह-शम्भुदास द्वारा। १३०० ई०।
सारसमुच्चय-हेमाद्रि-दानखण्ड एवं शूलपाणि कृत सामान्यक्रमवृत्ति।
दुर्गोत्सवविवेक में व०। सामान्यप्रघट्टक-त्रिस्थलीसेतु का एक अंश। सारसागर। सामान्यहोमपयति।
सारार्थचतुष्टय--वरदाचार्य द्वारा। सायणीय-नि० सि० में व० । सम्भवतः यह सायण की सारावलि-अपरार्क (पृ० ८७२, त्रिपुष्करयोग पर) पुस्तक प्रायश्चित्तसुधानिधि है।
द्वारा व० । सम्भवतः ज्योतिष-प्रन्थ, जो कल्याण वर्मा सायंप्रातरौपासन।
कृत था, जिसे अलबरूनी ने वर्णित किया है, अतः सारप्राहकर्मविपाक-नागर ब्राह्मण पद्मनाभ-आत्मज के तिथि १००० ई० के पूर्व ।
ज्येष्ठपुत्र कान्हरदेव द्वारा प्रणीत । मंगल भूपाल के सारावलि-दे० स्मृतिसारावलि। पुत्र दुर्गसिंह के मन्त्री कर्णसिंह के आश्रय में नन्दपद्रनगर सारासारविवेक। में संवत् १४४० (१३८४ ई०) में प्रणीत। लेखक सारोबार-(त्रिंशच्छ्लोकीविवरण की टीका) शम्भुका कथन है कि उसने मौलगिनृप या मौलिगिनृप के भट्ट द्वारा। कर्मविपाक पर अपने ग्रन्थ को आधृत किया है जिससे सिंहस्थपति-जब बृहस्पति सिंह में रहता है उस उसने १२०० श्लोक उद्धृत किये हैं। इस ग्रन्थ में समय गोदावरी में स्नान करने के पुण्य पर। नो० ४९०० श्लोक हैं। लेखक ने विज्ञानेश एवं बौधायन (भाग १०, पृ० ३४८)। हेमाद्रि पर आधृत। से क्रमशः २७६ एवं ५०० श्लोक लिये हैं। ग्रन्थ में सिद्धान्तचिन्तामणि-रघु० द्वारा मलमासतत्त्व में व० । ५५ प्रकरण एवं ४५ अधिकार हैं। दे० इ० आ० सिद्धान्तज्योत्स्ना-धनिराम द्वारा (से० प्रा०, ६५२१) । (पृ०५७३, सं० १७६७), बड़ोदा (स० ९४५९ एवं सिद्धान्ततत्त्वविवेक-कमलाकर द्वारा । दे० तत्त्वविवेक । ९०८२) एवं भण्डारकर रिपोर्ट (१८८२-८३ सिद्धान्ततिथिनिर्णय-शिवनन्दन द्वारा।ते० प्रा० के० पृ० ६३)। दानखण्ड एवं आचारदीपिका के भी (६५२२) । उद्धरण हैं। बड़ोदा पाण्डु० संवत् १४९६ (१४३९ सिवान्तनिर्णय-रघुराम द्वारा। ई०) में उतारी गयी थी।
सिदान्तपीयूष--कोलबुक के लिए चित्रपति द्वारा सारमञ्जरी-श्रीनाथकृत छन्दोगपरिशिष्टप्रकाश की लिखित । टोका।
सिद्धान्तबिन्दु-श्राद्ध पर (बर्नेल, तजौर, १४३ बी)। सारसंग्रह-दे० चाणक्यनीति के अन्तर्गत
सिदान्तमंजरी-दे० दत्तसिद्धान्तमंजरी। सारसंग्रह--मदनपारिजात, सं० को० तथा रघु के सिद्धान्तशिरोमणि-मोहन मिश्र द्वारा।
तिथितत्त्व, दीक्षातत्त्व एवं मलमासतत्त्व में व०। सिवान्तशेखर-नारायणभट्ट के प्रयोगरत्न एवं रघु० के सारसंग्रह-अज्ञात । शुभाशुभ दिनों पर ८८१ पद्यों में। मठप्रतिष्ठातत्त्व में व०। सम्भवतः तान्त्रिक ग्रन्थ ।
पाण्डु० (इ० आ०, पृ० ५३५ सं० १६७९) की १५०० ई० के पूर्व। तिथि १७७४ (१७१७-१८ ई०) है। सिद्धान्तशेखर-भास्कर के पुत्र विश्वनाथ द्वारा। सारसंग्रह-मुरारिभट्ट द्वारा।
सिद्धान्तसन्दर्भ-रघु० द्वारा मलमासतत्त्व में व०।
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