Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 645
________________ १९३८ धर्मशास्त्र का इतिहास श्लोकों से पता चलता है कि यह ग्रन्थ देवण्णभट्ट का स्मृतितस्वसार-बिहार एवं उड़ीसा कैटलाग (भाग १, संख्या ४४०)। स्मृतिचन्द्रिका-केशवादित्यभट्ट के पुत्र देवण्णभट्ट द्वारा। स्मृतितत्थामृत-भवेश एवं गौरी के पुत्र वर्षमान द्वारा। दे० प्रक० ८५ (घरपुरे एवं मैसूर गवर्नमेण्ट द्वारा नो० (६, पृ० १२) में शान्तिकपौष्टिकांजलि है। प्रका०)। नो० (६,१०५७) में तत्त्वामृतसारोद्धार (व्यवहारास्मृतिचन्द्रिका-वामदेव भट्टाचार्य द्वारा (नो० ९, पृ० जलि) है, अन्तिम पद्यों में वर्धमान का कथन है कि १३७)। उन्होंने आचार, श्राद्ध, शुद्धि एवं व्यवहार पर चार स्मृतिचन्द्रिका-वैदिकसार्वभौम द्वारा। कुसुम लिखे हैं। अतः स्मृतितत्त्वविवेक एवं स्मृतिस्मृतिचन्द्रिका--विट्ठलमिश्र के पुत्र शुकदेवमिश्र द्वारा। तत्त्वामृत दोनों एक ही हैं। यह भैरवेन्द्र के पुत्र राम तिथिनिर्णय, शुद्धि, आशौच, व्यवहार पर (इ. आ०, के आदेश से लिखा गया है। पृ० ४७१)। स्मृतिदर्पण-श्राद्धकल्पलता, नृसिंहप्रसाद, शूद्रकमलाकर, स्मृतिपत्रिका-अज्ञात। नो० (८, पृ० १५३)। विधानपारिजात में व०। १५०० ई० के पूर्व । स्मृतिचन्द्रोदय-गणेशभट्ट -द्वारा (से० प्रा० संख्या स्मृतिदर्पण-बड़ोदा (सं० १०९१६) की पाण्डु. ६७२३-२४)। अपूर्ण है। इसमें ३६ स्मृतिकारों, कलिवों का वर्णन स्मृतिचरण-भवानीशंकर द्वारा। स्मृतिचिन्तामणि--गोपीनाथ मिश्र के पुत्र गंगादित्य या स्मृतिदीपिका-वामदेव उपाध्याय द्वारा। श्राद्ध एवं गंगाधर द्वारा। कल्पतरू, कामधेनु, हेमाद्रि, मदनरत्न अन्य कृत्यों के कालों पर (भाग ५, पृ० १५७ एवं का उल्लेख है और नृसिंहप्रसाद (इ० आ०, पृ० ७, पृ० १२५)। ४४४ व्यवहार) में वणित है। लगभग १४५०- स्मृतिदुर्गभंजन-चन्द्रशेखर द्वारा। दे० दुर्गभञ्जन । १५००। स्मृतिनवनीत--रामचन्द्र एवं श्रीनिवास के शिष्य तथा स्मृतिचिन्तामणिसंग्रह-ट्राएनिएल कैट०,मद्रास गवर्नमेण्ट नारसिंह के पुत्र वृषभाद्रिनाथ द्वारा। पाण्डु०, १९१९-२२, पृ० ४९७८, आह्निक पर। स्मृतिनिबन्ध-नृसिंहभट्ट द्वारा। धर्मलक्षण, वर्णाश्रमस्मृतिचूगमणि-(या-मणिसंग्रह) वात्स्यगोत्र के वरदा- धर्म, विवाहादिसंस्कार, सापिण्ड्य, आह्निक, आशौच, चार्य द्वारा। श्राद्ध, दायभाग, प्रायश्चित्त पर एक बृहत् निबन्ध स्मृतितत्त्व-रघुनन्दन कृत। यह उनका वह निबन्ध है (नो० ८, पृ० १७४) । जिसमें २८ तत्त्व हैं। दे० प्रक० १०२। स्मृतिपरिभाषा-वर्धमान महामहोपाध्याय द्वारा। स्मृतितत्त्वप्रकाश-श्रीदेव द्वारा। स्मृतिमहार्णव, हरिहरमिश्र के नाम आये हैं। रघु० के स्मृतितत्त्वनिर्णय-(या व्यवस्थार्णव) श्रीनाथ आचार्य- एकादशीतत्त्व में व०। लग० १४५०-१५०० ई० के चूड़ामणि के पुत्र रामभद्र द्वारा। शूलपाणि का वर्णन बीच में। है। १५००-१५५० ई० (नो० न्यू०, १, पृ० ४१३)। स्मृतिप्रकाश-हरिभट्ट के पुत्र आयाणिभट्ट (या स्मृतितत्त्वविवेक-भवेश एवं गौरी के पुत्र एवं मिथिला आपाजि-) के पुत्र भास्करभट्ट या हरिभास्करद्वारा। के भैरवेन्द्र की राजसभा के न्यायमूर्ति वर्धमान महा- बीकानेर (पृ० ४६७) में श्राद्ध का अंश । महोपाध्याय द्वारा। लग० १४५०-१५०० ई०। स्मृतिप्रकाश-वासुदेव रथ द्वारा। कालनिरूपण, संवत्सर, आचार, श्राद्ध, शुद्धि एवं व्यवहार पर (नो०, भाग ५, संक्रान्ति पर। माधवाचार्य एवं विद्याकर वाजपेयी पृ० १८४)। का उल्लेख है। १५०० ई. के पश्चात्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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