Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 642
________________ धर्मशास्त्रीय प्रन्यसूची सिद्धान्तसुषोतार-विश्वम्भर के स्मृतिसारोद्धार में व०। सुबोधिनी (होमपद्धति)-अनन्तदेव द्वारा। नवग्रहों सीमन्तकर्मपति। . की शान्ति पर। सीमन्तनिर्णय। सुबोधिनी-(त्रिंशच्छ्लोकी की एक टीका) कमलाकर सुकृत्यप्रकाश ज्वालानाथ मिश्र द्वारा। आचार, आशौच, के पुत्र अनन्त द्वारा। १६१०-१६६० ई०। श्राद्ध एवं असत्परिग्रह (अनुपयुक्त लोगों से दान ग्रहण) सुबोधिनी--महादेव द्वारा। पर। नो० (भाग २, पृ० १३६)। सुबोधिनी--संजीवेश्वर के पुत्र रत्नपाणिशर्मा द्वारा। सुगतिसोपान-देवादित्य के पुत्र गणेश्वर मन्त्री द्वारा। मिथिला के रुद्रसिंह के आदेश से लिखित। दस यह चण्डेश्वर के चाचा थे। दे० प्रक०९०। लेखक संस्कारों, श्राद्ध एवं आह्निक पर एक स्मृतिनिबन्ध । ने अपने को महाराजाधिराज कहा है और लिखा है नो० (६, पृ० ४७)।। कि वह देवादित्य सांधिविग्रहिक (अपने पिता) से सुबोधिनी-विश्वेश्वरभट्ट द्वारा मिताक्षरा पर टीका। सहायता पाता था। रघु० द्वारा शुद्धितत्त्व में एवं दे० प्रक० ९३ । व्यवहार प्रकरण एवं अनुवाद द्रधर द्वारा व०। १४वीं शताब्दी के प्रथम चरण के • धरपुरे द्वारा प्रका०। लगभग प्रणीत। सुबोधिनी--(प्रयोगपद्धति) विश्राम के पुत्र शिवराम --दिनकर भट्ट के पुत्र विश्वेश्वर, उप० द्वारा; सामवेद के विद्यार्थियों के लिए। अपनी गागाभट्ट द्वारा। १६ संस्कारों पर। १६७५ ई० के कृत्यचिन्तामणि का उल्लेख किया है। लगभग लगभग प्रणीत (बीकानेर, पृ० ४७५)। १६४० ई०। सुदर्शनकालप्रभा-रामेश्वर शास्त्री द्वारा। सुमन्तुधर्मसूत्र-दे० प्रक० २९ एवं ट्राएनिएल कैटलाग, सुदर्शनभाष्य--आपस्तम्बगृह्यसूत्र पर सुदर्शनाचार्य को मद्रास गवर्नमेण्ट पाण्डु० (१९१९-२२, पृ० ५१६० टीका। भट्टोजि के चतुर्विशतिमत व्याख्यान में तथा ६२) । नि० सि. में व०। १५५० ई० के पूर्व। टोका सुमन्तुस्मृति-मिताक्षरा एव अपरार्क द्वारा व० । अण्डबिला, ब्रह्मविद्यातीर्थ द्वारा; नि०सि० में व०। सतकदीपिका--दे० त्रिशच्छ्लोकी। सुदर्शनमीमांसाविवेक-बड़ोदा (४०८५)। वैष्णवों के सूतकनिर्णय--(पृष्ठ के किनारे 'अष्टकाशौचभाष्य' नाम तप्तचक्रादि पचायुधधारण को मान्य ठहराता है। भी लिखा है)। स्टीन की पाण पाण्डु० की तिथि संवत् १८३४। . . में तिथि संवत् १४६६ (१४०९-१९ ई०) सुधीचन्द्रिका। है। “नाम, दन्त, उपनयन से पूर्व त्रिरात्र एवं सुषीमयूख। आप्लव" इत्यादि। सुषोविलोचन--गोपालसूरि के श्राद्धप्रयोग में, प्रयोग- सूतकनिर्णय--लक्ष्मीधर के पुत्र भट्टोजि द्वारा (भण्डारकर चन्द्रिका एव वैष्णवप्रक्रिया में व०। संग्रह में) माधव, हरदत्त, त्रिंशच्छ्लोकी का उल्लेख है। सुषीविलोचन-वैदिकसार्वभौम द्वारा। सुधीविलोचनसार। सूतकसिद्धान्त-देवयाज्ञिक द्वारा। सुन्दरराजीय--प्रयोगचन्द्रिका में व०। सूरसंक्रान्तिदीपिका-जयनारायण तर्फपंचानन द्वारा। सुप्रभा-सिद्धेश्वर के पुत्र अनन्त द्वारा लिखित गोविन्द के सूरिसन्तोष-रघु० द्वारा एकादशीतत्त्व एवं तिथितत्त्व में कुण्डमार्तण्ड पर एक टीका। १६९२ में प्रणीत।। उल्लिखित। सुबोधिनी प्रयोगपति-काशी संस्कृत माला में प्रका० सूर्यनमस्कारविधि । (कृष्णयजुर्वेदीया एवं सामवेदीया)। सूर्यप्रकाश-कृष्ण के पुत्र हरिसामन्तराज द्वारा। धर्म१३३ सूतकसार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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