Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 638
________________ धर्मशास्त्रीय अन्यसूची समयमयूख---कृष्णभट्ट द्वारा। सम्बन्धचूडामणि----अज्ञात। विवाह के निषिद्ध सम्बन्धों समयरन-मणिराम द्वारा। पर। समयालोक---पद्मनाभभट्ट द्वारा। दे० दुर्गावतीप्रकाश। सम्बन्धतत्व-नि० सि. में उल्लिखित । समयोवद्योत-मदनरत्न का एक भाग। सम्बन्धनिर्णय-गोपालन्यायपंचानन भट्टाचार्य द्वारा। समयसार-सूर्यदास के पुत्र रामचन्द्र द्वारा। टी० सपिण्ड, समानोदक, सगोत्र, समानप्रवर, बान्धव से लेखक के भाई भरत द्वारा। स्टीन (पृ० १७४) । टी० । सम्बन्धित विहित एवं अविहित विवाहों पर। सूर्यदास एवं विशालाक्षा के पुत्र शिवदास रा, इसने सम्बन्धप्रदीपिका-विद्यानिधि द्वारा। बड़ोदा (१०. लेखक को अपना गुरु माना है। नो० (भाग २, पृ० १०६)। २०४-२०६)। सम्बन्धरहस्य-स्मृतिरत्नावली में वर्णित। समस्तकालनिर्णयाधिकार। सम्बन्धविवेक-भवदेवभट्ट द्वारा। उद्वाहतत्त्व एवं समानप्रवरप्रन्य-स्टीन (प संस्कारतत्त्व में उल्लिखित। दे० प्रक० ७३ ! समावर्तनकालप्रायश्चित्त। सम्बन्धविवेक-शूलपाणि द्वारा। रघु० द्वारा शुद्धितत्त्व समावर्तनप्रयोग---श्यामसुन्दर रा। में व०, संस्कारतत्त्व के परिशिष्ट में भी उल्लेख है। समुदायप्रकरण-जगन्नाथसूरि द्वारा। सम्भवतः यह परिशिष्ट भवदेव के ग्रन्थ का ही है। समुद्रकर भाष्य---श्राद्धसूत्र पर; रघु० के आह्निकतत्त्व सम्बन्धव्यवस्थाविकाश--- (या उक्षाहव्यवस्था)। नो० एवं श्राद्धतत्त्व में वणित। (भाग ३, पृ० ३३४)। उपर्युक्त उद्वाहव्यवस्था से समुद्रयानमीमांसा। भित्र। सम्प्रदायप्रदीप-गद द्विवेदी द्वारा; संवत् १६१० सरटपतनशान्ति। (१५५३-४ ई.) में वृन्दावन में प्रणीत; पाँच प्रकरणों सरला- (गोभिलगृह्य पर भाष्य ? ) रघु० के उद्वाहमें। पुरुषोत्तम, ब्रह्मा, नारद, कृष्णद्वैपायन, शुक से तत्त्व, एकादशीतत्त्व एवं छन्दोगवृषोत्सर्गतत्त्व में आगत विष्णुभक्ति-परम्परा दी हुई है। इसमें मार्ग वणित। के तिरोधान का वर्णन है और तब वल्लभ, उनके पुत्र सरस्वतीदशश्लोकी। विट्ठल, गिरिधर आदि का उल्लेख है जो पुस्तक- सरस्वतीविलास-उड़ीसा के गजपति कुल के प्रतापरुद्रदेव प्रणयन के समय जीवित थे। इसमें पांच बातों का द्वारा। दे० प्रक० १००। उल्लेख है जिन्हें 'वस्तुपञ्चक' कहा जाता है, जिन सरोजकलिका-भास्वत्कविरत्न द्वारा। श्राद्ध, आशौच, पर वल्लभ विश्वास करते थे, यथा--गुरुसेवा, भाग- शुद्धि, गोत्र पर निबन्ध । मित्र इसे प्राचीन मानते हैं, वतार्थ, भगवत्स्वरूपनिर्णय, भगवत्सेवा, नरपेक्ष्य। क्योंकि इसमें किसी ग्रन्थ का उल्लेख नहीं है। नो० इसमें कुमारपाल, हेमचन्द्र, शंकराचार्य, सुरेश्वराचार्य, (भाग ६, पृ० ३९) । मध्वाचार्य, रामानुज एवं निम्बादित्य तथा वल्लभ -सरोजसुन्दर-(या स्मृतिसार) कृष्णभट्ट द्वारा। अलवर का, जब कि उनके माता-पिता काशी को त्याग रहे थे, (उद्धरण ३७०) । पीटर्सन का यह कथन भ्रामक है उल्लेख है। १० कॉ०, सं० १७६ (१८८४- कि सरोजसुन्दर नाम लेखक का है। सर्पबलि। सम्बन्धगणपति-हरिशंकर सूरि के पुत्र गणपति रावल सर्वतीर्थयात्राविधि-कमलाकर द्वारा। . द्वारा। इसमें विवाह के शुभ मुहूर्त, विवाह-प्रकारों सर्वदेवताप्रतिष्ठासारसंग्रह। __ आदि का वर्णन है। लगभग १६८५ ई०। सर्वदेवप्रतिष्ठाकर्म। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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