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१६३०
धर्मशास्त्र का इतिहास
सपिण्डीकरण।
समयकल्पतर-लक्ष्मणभट्ट के पुत्र पन्तोनीभट्ट द्वारा। सपिण्डीकरणसमन।
देखिए बीकानेर (पृ० ४५१!, जहाँ केवल एकादशीसपिण्डीकरणविधि।
निर्णय का अंश है। सपिण्डीकरणपाल।
समयनय-दिनकर के पुत्र विश्वेश्वर द्वारा। मराठा सपिणीकरमान्तक।
राजा शम्भाजी के लिए १६८१ में लिखित। सपिण्डीकरणान्वष्टका।
समयनिर्णयअनन्तभट्ट द्वारा। नो० (भाग ८, पृ० सपिजीवाद-रघुवर द्वारा (से० प्रा०, सं०६२२१) । २०५) शक सं० १६०२ (१६८०-८१) में। सप्तपाकयशभाष्य।
समयनिर्णय-पराशर गोत्र के नारायणात्मज माधव के सप्तपाकयज्ञशेष-चार प्रश्नों में विभक्त प्रत्येक प्रश्न पुत्र रामकृष्ण द्वारा; प्रतापमार्तण्ड का पांचवा भाग,
अध्यायों में विभक्त। नो० (भाग २, पृ० १२२- प्रताप (रुद्रदेव) के आदेश से लिखित। १५००१२५)।
१५२५ ई० के लगभग। सप्तपाकसंस्थाविषि-महादेव के पुत्र दिवाकर द्वारा। समयप्रकाश-मुकुन्दलाल द्वारा।
श्रवणाकर्म, सर्पबलि, आश्वयुजी, आग्रयण, अष्टका समयप्रकाश--रामचन्द्रयज्वा द्वारा। दे० नो० (भाग एवं पार्वणश्राद्ध पर। हेमाद्रि एवं कौस्तुभ के नाम ८, पृ० २१३)। आये हैं।
• समयप्रकाश----विष्णुशर्मा द्वारा । इन्हें 'स्वराट्सम्राडग्निसप्तमठाम्नायिक-देखिए मठाम्नायादिविचार। चित्स्थपतिमहायाज्ञिक' कहा गया है। यह 'कीर्तिसप्तषिमत--(-या स्मृति) नि. सि. में वर्णित। प्रकाश' नामक निबन्ध का एक अंश है। गौर कुल में सप्तषिसंमतस्मति--३६ पदों में ( ० आ०,१०४०२)3; उत्पन्न कनकसिंह के पुत्र कीर्तिसिंह के आदेश से
सात ऋषि है-नारद, वसिष्ठ, कौशिक, पैंगल, गर्ग, प्रणीत। इसका विरुद है 'कोदण्डपरशुराममानोन्नत, कश्यप एव कण्व।
जोमदसिंह देव के समान है, जिसके आदेश से मदनसप्तषिस्मृतिसंग्रह।
रत्न का प्रणयन हुआ। सम्भवतः इसी को श्राद्धक्रियासप्तव्यसनकथासमुच्चय-सोमकीर्ति आचार्य द्वारा, कौमुदी एवं रघ० के मलमासतत्त्व में समयप्रकाश (नो०, ८, पृ० १४४)।
कहा गया है। सप्तसंस्थाप्रयोग--विश्वनाथ के पुत्र अनन्तदीक्षित, उप० समयप्रदीप-विट्ठल दीक्षित द्वारा (से० प्रा०, ६२८४) । यज्ञोपवीत द्वारा।
समयप्रदीप-श्रीदत्त द्वारा। दे० प्रक० ८९। टी० सप्तसंस्थाप्रयोग--महादेव के पुत्र बालकृष्ण द्वारा। जीर्णोद्धार, मधुसूदन ठाकुर द्वारा। सप्तसंस्था-प्रयोग-अनन्तदेव के राजधर्मकौस्तुभ से उद्धत। समयप्रदीप-हरिहरभट्टाचार्य द्वारा। तिथि शक १४८१ सप्तसंस्थाप्रयोग-नारायणभट्ट के प्रयोगरत्न से। (शाके महीमंगलवेदचन्द्रसख्यागते) अर्थात् १५५९सप्तसूत्रसंन्यासपति--संन्यास-ग्रहण करने एवं दशनामी ६० ई०) । यह सन्देहास्पद है कि लेखक रघु० का पिता
संन्यासियों (तीर्थ, आश्रम, वन, अरण्य, गिरि, पर्वत, था। नो० (भाग ३, पृ० ५५-५६) एवं बड़ोदा (सं० सागर, सरस्वती, भारती एवं पुरी) एवं ब्रह्मा से लेकर १०१२०) । इसमें धार्मिक कृत्यों के मुहूर्तों का शंकराचार्य तक के १० महा रुओं के विषय में। नो० उल्लेख है। (भाग ६, पृ० २९५) ।
समयमनोरमा-से० प्रा० (६२८६)। सभापति-लक्षण।
समयमयूख---(या कालमयूख) नीलकण्ठ द्वारा। दे. समयकमलाकर-कमलाकर द्वारा।
प्रक० १०६ । घरपुरे द्वारा मुद्रित ।
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