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ओर बहुत से मन्दिरों का उल्लेख है जो किसी ज्वालामुखी के अवशेष पर स्थित है। लोलार्क -- ( वारा० के अन्तर्गत) मत्स्य० १८५/६८ (बनारस के पाँच मुख्य तीर्थों में एक ), कूर्म ० १।३५।१४, पद्म० १|३७|१७ ( यहाँ लोकार्क पाठ आया है ), वाम० १५।५८-५९ । लोहकूट - नारद० २६० २४ । लोहजंघवन - ( मथुरा के
१२ वनों में ९व) वराह०
१५३।४१ । लोहवण्ड- ४-मत्स्य० २२।६५, वाम० ९०।२९ ( यहाँ विष्णु हृषीकेश के रूप में हैं । यहाँ पर श्राद्ध अत्यंत फलदायक होता है) ।
लोहार्गल - (हिमालय में एक विष्णुस्थान ) वराह० १४०।५ (यहाँ म्लेच्छ राजा रहते हैं), १४४।१०, १५१११-८३ । श्लोक ७-८ में आया है कि सिद्धवट से तीस योजन म्लेच्छों के बीच लोहार्गल है । वराह० १५१।१३-१४ में इसके नाम की व्याख्या की गयी है और १५१।७९ में कहा गया है कि उसका विस्तार २५ योजन है। देखिए तीर्थकल्प०, पृष्ठ २२८-२२९ । दे (पृष्ठ ११५) ने कल्पना की है कि यह कुमायूँ लोहाघाट है।
धर्मशास्त्र का इतिहास
लोहित - ( शोण) अनु० १६६।२३; ब्रह्माण्ड० (२।१६
२७) में लोहित को सम्भवतः ब्रह्मपुत्र कहा गया है। लोहित-गंगक- (लौहित्य) कालिका ० ८६ । ३२-३४ । लौकिक - ( वारा० के अन्तर्गत ) कूर्म० १।३५।१३ । लौहित्य - (ब्रह्मपुत्र नदी) वन० ८५।२, वायु० ४७ ११, ७७/९५, मत्स्य० १२१।११-१२ ( यह वह नद है जो हेमशृंग पर्वत के चरण स्थित लोहित झील से निकला है) अनु० २५/४६, पद्म० १।३९।२, वन० ५२/५४, कालिका ० ८६।२६ ३४ । रघुवंश (४१८१ ) से प्रकट होता है कि लोहित्य प्राग्ज्योतिष की पश्चिमी सीमा पर थी । देखिए तीर्थप्रकाश, पृष्ठ ६०१-६०२, जहाँ माहात्म्य वर्णित है । लौहित्य नाम यशोवर्मन के शिलालेख (लगभग ५३२-३३ ई०) में पाया जाता है, देखिए गुप्तों के अभिलेख (पृष्ठ १४२ एवं १४६ ) ।
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व
वंशगुल्म -- ( नर्मदा एवं शोण के उद्गम पर ) वन०
८५१९ ।
वंशषरा - ( महेन्द्र से निकली हुई एक नदी) वायु० ४५/१०६, मार्कण्डेय ० ५४।२९ ( वंशंकरा नाम आया है) एवं वराह० ८५ (पद्म) ने 'वंशवरा' पढ़ा है । पार्जिटर ( पृ० ३०५ ) ने कहा है कि यह आधुनिक बंशधरा है, जहाँ चिकाकोल से १७ मील दूर कलिंगपत्तनम् अवस्थित है। देखिए संत-बोम्मली नामक इन्द्रवर्मा का दानपत्र जो कलिंगनगर में लिखा गया था (एपि० इण्डि०, जिल्द २५, पृ० १९४) । वंशमूलक -- पद्म० १।२६।३८ । वंशोवमेव- --- मत्स्य० २४।२५ ।
बंशु - ( आधुनिक आक्सस) सभा० ५१।२० ( यहाँ भेंट के रूप में रासभ लाये गये थे ) । वञ्जरा-- (नदी, गोदावरी के दक्षिणी तट पर ) ब्रह्म०
१५९।४५ । यह सम्भवतः आधुनिक भञ्जरा नदी है, जो नान्देड़ जिले में गोदावरी में मिलती है। वञ्जरासंगम - ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १५९।१ । वञ्जुला - (१) (नदी, जो सह्य से निकलकर गोदावरी में मिलती है) मत्स्य ० ११४।२९, वायु० ४५/१०३, वामन० ५७।७६; (२) ( महेन्द्र से निर्गत) ब्रह्म० २७॥३७॥
वट - (१) (प्रयाग में) मत्स्य० १०४ । १०, १११|१० ;
(२) (गया में) वि० ध० सू० ८५1५ । वटेश्वर-- ( १ ) ( नर्मदा पर ) मत्स्य० १९१।२७, कूर्म २।४१।१९, पद्म० १ २८/२७, अग्नि० १०९/२० ; ( २ ) ( गया में ) अग्नि० ११५।७३, पद्म० १|३८|४६, नारद ० २/४७/५९ (३) (प्रयाग में) मत्स्य० २२/९; (४) ( पुरी में) नारद० ११।५६।२८ |
वडवा --- ( इसे सप्तचरु भी कहा जाता है ) वन०
८२।८९२-९९, २२२।२४, वि० ० सू० ८५। ३७ । 'वैजयन्ती' नामक टीका के मत से यह दक्षिण भारत का तीर्थ है, किन्तु वन० ने इसे उत्तर-पूर्व में कहा
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