Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 581
________________ १५७४ धर्मशास्त्र का इतिहास प्रतिसरक्षन्धप्रयोग-विवाह एवं अन्य उत्सवावसर पर कलाई में सूत्र बाँधने के नियमों पर । प्रतीताक्षरा-- मिताक्षरा पर नन्दपण्डित की टी० । दे० प्रक० १०५ । प्रत्यवरोहणप्रयोग - नारायणभट्ट के प्रयोगरत्न का अंश । प्रथिततिथिनिर्णय-नागदेवज्ञ द्वारा | प्रदीप - बहुत से ग्रन्थों के नामों के अन्त में आता है, यथा आचारप्रदीप कृत्यप्रदीप, समयप्रदीप, संवत्सरप्रदीप आदि ! प्रदीप दे० प्रक० ८०१ प्रदीपप्रदानपद्धति - देखिए महाप्रदीप० । प्रदीपिका-गणेश के दण्डविवेक में एवं सरस्वतीविलास में ब० । १४५० ई० के पूर्व । प्रदोष निर्णय-- विष्णुभट्ट द्वारा ( पुरुषार्थचिन्तामणि से ) । प्रदोषपूजापद्धति --- वासुदेवेन्द्र के शिष्य वल्लभेन्द्र द्वारा । प्रसार वर्ष क्रियाकौमुदी, आह्निकतत्त्व ( रघु० द्वारा) में व० । तन्त्रशास्त्र का ग्रन्थ प्रतीत होता है। १४५० ई० के पूर्व । टी० व्याख्यान, देवनाथ की तन्त्रकौमुदी में उ० । १५५० ई० के पूर्व । टी० गीर्वाणयोगीन्द्र द्वारा। टी० ज्ञानस्वरूप द्वारा । प्रसारविवेक (या भवसारविवेक) सदाशिव के पुत्र गंगाधर महाड़कर द्वारा। आठ उल्लासों में । पाण्डु तिथि सं० १८४० ( १७८३-४ ई० ) । दे० नो० ( जिल्द १०, पृ० १६२ ) । आह्निक, भगवत्पूजा, भागवतधर्म पर | प्रपञ्चामृतसार - तंजौर के राजा एकराज ( एकोजि ) द्वारा, जिन्होंने १६७६ से १६८४ ई० तक राज्य किया। पूजा एवं नीति के कुछ अंश प्राप्त हुए हैं। बर्नेल, तंजौर कैट०, ( पृ० १४१ बी ) । प्रपन्नगतिदीपिका -- तातादास द्वारा | विज्ञानेश्वर, चन्द्रिका, हेमाद्रि, माधव, सार्वभौम, वैद्यनाथदीक्षित का उल्लेख है । प्रपन्नविनचर्या - रामानुज सम्प्रदाय के अनुसार । प्रपसलक्षण । प्रपोर्ध्वदेहिक विधि | Jain Education International प्रभाकराह्निक- प्रभाकर भट्ट द्वारा । प्रमाणदर्पण । प्रमाणपल्लव – सिंह या नरसिंह ठक्कुर द्वारा । आचार आदि पर परिच्छेदों में विभक्त । प्रमाणसंग्रह | प्रमाणसारप्रकाशिका | प्रमेयमाला | प्रयागकुस्य- त्रिस्थलसेतु का एक अंश । प्रयागप्रकरण-- - ( प्रयागप्रघट्टक ) त्रिस्थलीसेतु से | प्रयागसेतु - अनन्तदेव के स्मृतिकौस्तुभ में ज० । त्रिस्थल सेतु का एक अंश । प्रयागकोस्तुभ-गणेशपाठक द्वारा । प्रयोगचन्द्रिका वीरराघव द्वारा । प्रयोगeन्त्रिका सीताराम के भाई श्रीनिवास शिष्य द्वारा । प्रयोगचन्द्रिका -- १८ खण्डों में । पुंसवन से श्राद्ध तक । आपस्तम्बगृह्य का अनुसरण है। कण्ठभूषण, पंचाग्निकारिका, जयन्तकारिका, कपर्दकारिका, दशनिर्णय, वामनकारिका, सुवीविलोचन, स्मृतिरत्नाकर का उल्लेख है (मद्रास गवर्नमेण्ट सं० पाण्डु०, जिल्द ७, पृ० २७९८, सं० ३७१३) । प्रयोगचिन्तामणि -- ( रामकल्पद्रुम का भाग) अनन्तभट्ट द्वारा । प्रयोगचूडामणि- ( भण्डारकर संग्रह में पाण्डु० ) स्वस्तिक, पुण्याहवाचन, ग्रहयज्ञ, स्थालीपाक, दुष्ट रजोदर्शनशान्ति, गर्भाधान, सीमन्तोन्नयन, षष्ठी पूजा, नामकरण, चौल एवं अन्य संस्कारों, उपनयन, विवाह पर । प्रयोगचूडामणि- मित्र, नो० (जिल्द ४, पृ० २२) । प्रयोगचूडामणि - रघु० द्वारा व० । प्रयोगतत्त्व --- शाण्डिल्य गोत्रज भानुजि के पुत्र रघुनाथ द्वारा । सामान्य धार्मिक कृत्यों (संस्कारों), परिभाषा, स्वस्तिवाचन ग्रहमख आदि पर २५ तत्त्वों में काशी में प्रणीत । तिथि श० सं० १५७७ (१६५६ ई० ) में रचित । प्रयोगतिलक— वीरराघव द्वारा। बड़ोदा (सं० ९८०६ ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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