Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 630
________________ धर्मशास्त्रीय ग्रन्थसूची १६२३ श्रौतस्मातविधि-बालकृष्ण द्वारा। पडशीतिः-(या आशौचनिर्णय) कौशिकादित्य (अर्थात् श्लोककात्यायन-अपरार्क में व०। कौशिक गोत्र के आदित्य) द्वारा। प्रथम श्लोक हैश्लोककालनिर्णय । 'अथानेकर्षिवाक्यानि संगत्यादाय केवलम। संग्रथ्य श्लोकगौतम--जीमूत० के कालविवेक, अपरार्क, काल- कौशिकादित्यो लिखत्याशौचनिर्णयम् ॥' जनन-मृत्यु माधव द्वारा व०। के अशीच पर ८६ श्लोक एवं सूतक, सगोत्राशीच, श्लोकचतुर्दशी-(धर्मानुबन्धी) कृष्णशेष द्वारा। टी० असगोत्राशौच, संस्काराशौच एवं आशीचापवाद रामपण्डित शेष द्वारा; सरस्वतीभवन माला द्वारा पर ५ प्रकरण। औफेल्ट (२, ५० ८२) ने भ्रमवश (सं० २२) मुद्रित। इसे अभिनवषडशीति माना है। टी० अघशोधिनी, श्लोकतर्पण-लौगाक्षि द्वारा। लक्ष्मीनृसिंह द्वारा। टी० शुद्धिचन्द्रिका, नन्दपण्डित श्लोकसंग्रह--९६ श्राद्धों पर। द्वारा (चौखम्भा सं० सी० द्वारा प्र०)। श्लोकापस्तम्ब-आचारमयख में व०। षडशीति-यल्लभट्ट द्वारा। श्वभूस्नुषाधनसंवाद--(वर्नेल, तंजौर, पृ० १४३ बी०) षट्त्रिंशन्मत--स्मृति च० एवं परा० मा० द्वारा व० । इसने निर्णय किया है कि जब व्यक्ति पुत्रहीन मर षण्णवतिभावनिर्णय-गोविन्दसूरि के पुत्र शिवभट्ट द्वारा जाता है तो विधवा एवं माता बराबर-बराबर एक श्लोक में ९६ श्राद्धों का संक्षेप में वर्णन हैरिक्थ पा जाती हैं। 'अमायुगमनुक्रान्तिधृतिपातमहालया। आन्वष्टक्यं श्वासकर्मप्रकाश। च पूर्वेयुः षण्णवत्यः प्रकीर्तिताः॥' कमलाकरभट्ट, श्वेताश्वदानविधि--कमलाकर द्वारा। नीलकण्ठभट्ट, दीपिकाविवरण, प्रयोगरत्न, श्राद्ध षट्कर्मचन्द्रिका-लक्ष्मणभट्ट के पुत्र चरुकरि तिम्मयज्वा कलिका, कलिकाविवरण (विश्वरूपाचार्यकृत) का द्वारा। संन्यासी हो जाने पर ले० रामचन्द्राश्रम उल्लेख है। १६५० ई० के पश्चात् । कहलाया। षण्णवतिश्राद्धपद्धति-रामेश्वर के पुत्र माधवात्मज षट्कर्मचन्द्रिका-कृष्णपण्डित के सन्ध्याभाष्य में व०। रघुनाथ द्वारा। नारायणभट्ट को अपना चाचा कहा षट्कर्मदीपिका--अज्ञात। त्र्यम्बक, पार्थिव शिवलिंग गया है। १५५०-१६२५ ई० के लगभग। की पूजा के कृत्यों का संग्रह (नो०, जिल्द ९, प० षण्णवतिश्राद्धप्रयोग। २७३)। षष्टिपूर्तिशान्ति-(६० वर्ष पूर्ण होने पर कृत्य) बर्नेल षट्कर्मदीपिका--मुकुन्दलाल द्वारा। (तंजौर, पृ० १३८ बी, १५१ बी०) । षट्कर्मविचार--स्मृतिरत्नमहोदधि का एक भाग। षोडशकर्मकलापनिर्णय। षट्कर्मविवेक--हरिराम द्वारा।। षोडशकर्मपद्धति-ऋषिभट्ट द्वारा। षट्कर्मव्याख्यानचिन्तामणि--नित्यानन्द द्वारा। यजुर्वेद षोडशकर्मपद्धति-गंगाधर द्वारा। के पाठकों के लिए विवाह एवं अन्य पंचकर्मों के समय षोडशकर्मप्रयोग-सोलह संस्कारों, यथा--स्थालीपाक, प्रयुक्त वाक्यों के विषय में निरूपण । गुणविष्णु पर पुंसवन, अनवलोभन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, षष्ठीआधृत (नो०, जिल्द ३, पृ० २७) । पूजा, पञ्चगव्य, नामकरण, निष्क्रमण, कर्णवेध, पत्रिंशन्मत-दे० प्रक० ५३।। अन्नप्राशन, चौलकर्म, उपनयन, गोदान, समावर्तन, षट्पदी--विट्ठलदीक्षित कृत (से० प्रा० कैटलाग, 'विवाह पर। प्रयोगसार, प्रयोगपारिजात, दीपिका का सं० ६०२९)। उ० है । पाण्डु० की तिथि शक सं० १६९५ है षट्पारायणविधि। (भण्डारकर संग्रह), १५०० ई. के उपरान्त। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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