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धर्मशास्त्र का इतिहास
रामकृष्ण कृत कात्यायन के श्राद्धकल्पसूत्र पर आधृत। श्राद्धन्दु---अज्ञात (नो०, जिल्द ५, पृ० ९६) । उन्होंने कातीयगृह्यसूत्र पर संस्कारगणपति ग्रन्थ लिखा श्राद्धेन्दुशेखर----नागोजिभट्ट ('काले' उपाधि) द्वारा। है। शक सं० १६७३ (त्रिनगभूपाख्ये) अर्थात् दे० प्रक० ११० । १७५१ ई० में बनारस में प्रणीत। दे० इण्डि० आ० श्राद्धोद्योत--वर्धमान के गंगाकृत्यविवेक में व०। यह (पृ० ५६०-६१, सं० १७३८) । इण्डि० आ० (पृ० मदनरत्न का एक भाग है. ऐसा प्रतीत होता है। ५६२) में तिथि शक-गगनांगा (का) ङ्गभूमिते श्राद्धोपयोगिवचन--अनन्तभट्ट द्वारा। (१६७०-१६९०) एवं १८२६ (वि० सं०, १७७० श्रावणकर्मसर्पबलिप्रयोग--एक गृह्य कृत्य । ई०) है, जो सम्भवतः पाण्डु० की तिथि है। कर्क, श्रावणद्वादशी।
हलायुध, गदाधर, काशिका, दीपिका का उल्लेख है। श्रावणी-(आश्वलायनीय)। धाडसमुच्चय ।
श्रावणी--(काण्वशाखीय)। बारसागर-(१) कुम्भकभट्ट (?) द्वारा। यह नाम श्रावणीकर्म---(वाजसनेयी)।
कुल्लक या कुल्लूकभट्ट तो नहीं है ? (२) कुल्लूक श्रावणीकर्म-(हिरण्यकेशी) गोपीनाथ दीक्षित द्वारा। भट्ट द्वारा। दे० प्रक०८८। (३) नारायण आरड श्रावणोत्सर्गकर्म। द्वारा। लेखक के गृह्याग्निसार में व०। १६५० ई० श्री-आह्निक। के पश्चात्।
श्रीकरनिबन्ध-हरिनाथ के स्मृतिसार में व० । धाडसार-(१) नृसिंहप्रसाद का एक अंश। विधान- श्रीधरसमुच्चय--रघु० के मलमासतत्त्व में व० ।
पारिजात में व०। (२) कमलाकर द्वारा। श्रीधरीय-नि०सि० एवं योगपारिजात में व०। दे० धाडसौख्य--टोडरानन्द का अंश। दे० प्रक० १०४। प्रक० ८१ । धाबहेमाद्रि--चतुर्वर्गचिन्तामणि का श्राद्धप्रकरण । श्रीनिवासदीक्षितीय-कौशिकगोत्र के गोविन्दार्य के पुत्र भावाङ्गतर्पणनिर्णय-रामकृष्ण द्वारा (बड़ोदा, सं० श्रीनिवास द्वारा। वैखानससूत्र पर (ट्राएनीएल कैट०
पाण्डु०, सन् १९१९-२२, पृ० ५१७९) । भावाङ्गभास्कर--यज्ञदत्त के पुत्र विष्णुशर्मा द्वारा। श्रीपतिरत्नमाला---समयमयूख में व० ।
कर्क पर आधृत । माध्यन्दिनीशाखा के लिए (अलवर, श्रीपतिव्यवहारनिर्णय-रघु० के तिथितत्त्व में व०। उद्धरण ३५९)।
जावानन्द (जिल्द १, .० २१)। धावादर्श---महेश्वर मिश्र द्वारा।
श्रीपतिव्यवहारसमुच्चय--रघ के संस्कारत त्व में व०। श्राद्वादिविधि।
सम्भवतः यह उपर्युवत ही है। भावादिविवेककौमुदी--रामकृष्ण द्वारा।
श्रीपतिसमुच्चय-...रघु० के ज्यातिस्तत्त्व में व० (जिल्द पायाधिकार--विष्णुदत्त द्वारा।
१, पृ० ५८२)। श्रावाधिकारिनिर्णय--गोपाल न्यायपंचानन द्वारा (नो०, श्रीस्थलप्रकाश----तिगलाभद्र द्वारा। पीटर्सन (५वीं जिल्द ३, पृ० ६०।
रिपोर्ट, सं० १५४)। बासानुक्रमणिका।
श्रुतिचन्द्रिका। श्रासापरार्क ।
श्रुतिमीमांसा--नृसिंह वाजपेयी कृत । धावालोक--लक्षमण के आचाररत्न में व०। १६०० ई० श्रुतिमुक्ताफल। के पूर्व ।
श्रौतस्मातकर्मप्रयोग--नृसिंह द्वारा। धावाशीचीयदर्पण-देवराज द्वारा।
श्रौतस्मार्तक्रियापद्धति।
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