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धर्मशास्त्र का इतिहास
यह प्रायश्चित्तमयूख में व० है । दे० प्रक० २५ । बौधायनगृह्यकारिका - कनकसभापति द्वारा ।
टी० हरिराम द्वारा ।
बुधाष्टमी । बुधाष्टमीव्रतकालनिर्णय ।
बुधाष्टमीव्रतोद्यापन --स्टीन ( पृ० ९६ ) ।
बृहज्जातिविवेक -- गोपीनाथ कवि द्वारा। बड़ोदा (सं०
९७०५) ।
बृहत्पाराशरस्मृति - जीवानन्द (भाग ३, पृ०५३३०९) । बृहत्संहिता - व्यास द्वारा ।
बृहद्यम -- आनन्दाश्रम ० ( पृ० ९९ १०७ ) ।
बृहद्रत्नाकर - वामनभट्ट द्वारा ।
बहुव्राजमार्तण्ड - मलमासतत्त्व एवं संस्कारतत्त्व में रघु०
द्वारा व० ।
बृहद्वसिष्ठ स्मृति - मिताक्षरा, मदन०, हलायुधद्वारा उ० । बृहद्विष्णुस्मृति ।
बृहद्व्यास -- मिता० द्वारा व० ।
बृहस्पतिशान्ति - - अनन्तदेव कृत संस्कारकौस्तुभ से । बृहस्पतिस्मृति-- दे० प्रक० ३७ । जीवा० (भाग १, पृ०
६४४-६५१) एवं आनन्दा० ( पृ० १०८-१११) । टी० हेमाद्रि (परिशेषखण्ड, काल०, पृ० ३९९ ) में व० । बैजवाप ( या पि) गृह्य - - मीमांसासूत्र ( १|३|११ ) के तन्त्रवार्तिक में कुमारिलभट्ट द्वारा व०, यथा-'आश्वलायनकं सूत्र बैजवापिकृतं तथा ।' बैजवापिस्मृति - अपरार्क ( शुभ मृत्तिका एवं सपिण्डन के विषयक श्लोकों में) द्वारा १० | बैजवापायन -- हेमाद्रि द्वारा व० । बोपणभट्टीय- इसकी टीका माधवमुनि द्वारा लिखित है । बौधायन गृह्य --- मैसूर में प्रका० (डा० शामशास्त्री द्वारा सम्पा० ) ; गृह्य के चार प्रश्न, गृह्यसूत्रपरिभाषा पर दो, गृह्यशेष पर पाँच, पितृमेधसूत्र पर तीन एवं पितृमेधशेष पर एक प्रश्न। यह बौवायनगृह्यशेषसूत्र (२६) है, जिसमें पुत्रप्रतिगृह (गोद लेने) पर एक वचन है जो वसिष्ठवर्मसूत्र से बहुत मिलता है। टी. पूरणव्याख्या, अष्टावक्रलिखित | टी० भाष्य (शिष्टिभाष्य ), हुल्श (२, सं० ६६८ ) ।
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aterer गृह्यपद्धति - केशवस्वामी द्वारा । बौधायन गृह्यपरिशिष्ट - हाटिङ्ग द्वारा सम्पा० । atara गुह्यप्रयोगमाला - चौण्ड या चाउण्ड के पुत्र राम द्वारा। अलवर ( उद्धरण २१ ) | प्रयोगसार का उल्लेख है । बौधायनंगृह्यप्रायश्चितसूत्र । बौधायनतति-- गृह्य कर्मों पर ।
बौधायनधर्मसूत्र - दे० प्रक० ६, आनन्दा० ( पृ० ४२५४८४) एवं मैसूर ग० सं० सी० । टी० गोविन्दस्वामी द्वारा (वही, मैसूर ) । टी० अमल, परमेश्वर परि
व्राजक द्वारा।
aterer संग्रह ।
बोधायनस्मातप्रयोग - कनकसभापति द्वारा हुल्श (रिपोर्ट २ सं० ६७२) ।
बौधायनस्मृति । बौधायनाह्निक-विद्यापति द्वारा । बौधायनीयपरिशिष्ट-रघु० के आह्निकतत्त्व द्वारा । ब्रह्मगर्भस्मृति-- मिताक्षरा (याज्ञ० ३।२६८, अपरार्क एवं स्मृतिच० द्वारा व० ) । ब्रह्मचारिव्रतलोपप्रायश्चित्तप्रयोग - त्री० बी० आर० ए० एस० (जिल्द २, पृ० २४६ ) । ब्रह्मदत्तभाष्य-- रघु० के शुद्धितत्त्व में व० एवं कल्पत द्वारा उ०, अतः ११०० के पूर्व । यह शांखायनगृह्य पर टी० प्रतीत होती है ।
ब्रह्मप्रकाशिका - ( सन्ध्यामन्त्र पर टी०) महेशमिश्र के पुत्र वनमालिमिश्र द्वारा । ब्रह्मयज्ञशिरोरत्न - नरसिंह द्वारा । ब्रह्मसंस्कारमञ्जरी - नारायण ठक्कुर द्वारा मुरारिभाष्य, उवटभाष्य, पारस्करगृह्यभाष्य में व ब्रह्मोदनप्रायश्चित्त- बड़ोदा (सं० ६७८९ डी ) । ब्राह्मणपद्धति |
ब्राह्मणसर्वस्व हलायुध द्वारा । दे० प्रक० ७२ । कलकत्ता में १८९३ ई० एवं बनारस में प्रका० । ब्राह्मवधस्मृति - मिताक्षरा (याज्ञ० ३।२५७ ) में व० ।
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