Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 615
________________ १६०८ पर्मशास्त्र का इतिहास भाषा, उत्तर, क्रिया एवं निर्णय पर। नो० (जिल्द व्यवहारप्रकाश-मित्र मिश्र द्वारा (वीरमित्रोदय का ३, पृ० ३४)। अंश)। दे० प्रक० १०८। व्यवहारतस्व-शङ्करभट्ट के पुत्र नीलकण्ठ द्वारा। दे० व्यवहारप्रकाश-शरभोजी (तंजौर के राजा, १७९८. प्रक० १०७। १८३३ ई०) द्वारा। व्यवहारतस्व-रघुनन्दन द्वारा। दे० प्रक० १०२। व्यवहारप्रकाश-हरिराम द्वारा। व्यवहारतस्वालोक-देखिए व्यवहारलोक। ज्यवहारप्रदीप-कल्याणवर्मा द्वारा। व्यवहारतिलक-भवदेव भट्ट द्वारा। दे० प्रक० ७३। व्यवहारप्रदीप-कृष्ण द्वारा। धर्मशास्त्र' सम्बन्धी व्यवहारदर्पण--अनन्तदेव याज्ञिक द्वारा। व्यवहार के ज्योतिष पर । ह० प्र० (.० २० एवं २५३), रघु० अर्थ, विवादपद, प्रतिवाद, साक्षी-साधन, साक्षियों, के दिव्यतत्त्व में व०।। लेख्यप्रमाण, स्वामित्व, निर्णय पर। व्यवहारप्रदीप-पद्मनाभ मिश्र द्वारा । न्याय-सम्बन्धी व्यवहारदर्पण-रामकृष्ण भद्र द्वारा। राजधर्म, भाषा, विधि पर। उत्तर, प्रत्यवस्कन्दन, प्राङन्याय, साक्षी, लिखित, व्यहारप्रदीपिका--वर्धमान द्वारा व०। भुक्ति , जयपत्र पर। ध्यवहारमयूख--नीलकण्ठ द्वारा। दे० प्रक० १०७ । व्यवहारवशश्लोको-(या दायदशक) श्रीधरभट्ट द्वारा। भण्डारकर ओ० इस्टि०, पूना; जे० आर० घरपुरे, व्यवहारदीधिति--राजधर्मकौस्तुभ का एक अंश। बम्बई एव वी० एन० मण्डलिक द्वारा मुद्रित। व्यवहारदीपिका--दिव्यतस्व में रघु० द्वारा उल्लिखित। व्यवहारमातृका--(या न्यायमातृका) जीमूतवाहन व्यवहारनिर्णय-(गौड़) शूद्रकमलाकर में उल्लिखित। द्वारा। दे० प्रक० ७८ । व्यवहारनिर्णय--काशी निवासी मयाराममिश्र गौड़ द्वारा व्यवहारमाधव-पराशरमाधवीय का तृतीय भाग। (जयसिंह के आदेश से)। न्याय-विधि एवं व्यवहार- व्यवहारमाला-वरदराज द्वारा। १८वीं शताब्दी। पदों पर। ड० का० पाण्डु० (१४०, १८९२-९५) मलावार में अधिक प्रयुक्त। सं० १८८५ ( १७९८-९९ ई० ) में उतारी व्यवहारमालिका--बड़ोदा (सं० ६३७३) । गयी। व्यवहाररत्न-भौआलवंशज चन्दनानन्द के पुत्र भानुनाथ व्यवहारनिर्णय--वरदराज द्वारा। स० वि० एवं नि० दैवज्ञ द्वारा। सि० में व०। १५०० ई० के लगभग प्रणीत (वर्नेल व्यवहाररत्नाकर-चण्डेश्वर द्वारा। दे० प्रक० ९०। ने अनूदित किया है। व्यवहाररत्नावली। व्यवहारनिर्णय--श्रीपति द्वारा। ज्योतिस्तत्त्व एवं तिथि- व्यवहारशिरोमणि--विज्ञानेश्वर-शिष्य नारायण द्वार।। तत्त्व में व०। सम्भवतः धर्मशास्त्र-सम्बन्धी ज्योतिष दे० प्र० ७० । ट्राएनिएल कैट० मद्रास, जिल्द ३, की बातों पर। भाग १, पृ० ३९३८, सं० २७५० । व्यवहारपदन्यास-दे० ट्राएनिएल कैट०, मद्रास, पाण्डु० व्यवहारसमुच्चय-हरिगण द्वारा। सन् १९१९-२२ ई०, जिल्द ४, पृ० ४८३६ । व्यव- व्यवहारसमुच्चय--रघु० द्वारा देवप्रतिष्ठातत्त्व में एवं हारावलोकनवर्म, प्राविवाकधर्म, सभालक्षण, सम्य- नि० सि० में उल्लिखित । लक्षण, सम्योपदेश, व्यवहारस्वरूप, विचारविधि व्यवहारसर्वस्व-विश्वेश्वरदीक्षित के पुत्र सर्वेश्वर द्वारा। एवं भाषानिरूपण नामक ८ विषयों पर। व्यवहारसार-मयाराम मिश्र द्वारा। व्यहारपरिभाषा-हरिदत्त मिश्र द्वारा। व्यवहारसार-नि० सि० एवं निर्णयदीपक में व०। व्यवहारपरिशिष्ट। व्यवहारसारसंग्रह-नारायण शर्मा द्वारा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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