________________
धर्मशास्त्रीय ग्रन्यसूची
१६१७ शूपाचारसंप्रह---(या सच्छूद्राचार) नवरंग सौन्दर्य भट्ट शैवाह्निक । द्वारा।
शौचलक्षण। शूबाहःकृत्यतत्व--(-प्रयोग)-रघु० द्वारा। नो० न्यू० शौचसंग्रहविवृति--भट्टाचार्य द्वारा। (जिल्द २, पृ० २००)।
शौचाचमनविधि। शूद्राह्निक।
शौचाचारपटति-हेमाद्रि (व्रतखण्ड ११५९) द्वारा उ०। शूद्राह्निकाचार----श्रीगर्भकृत। ताड़-पत्र पाण्डुलिपि की शौनककारिका-(या शौनकोक्तवृद्धकारिका) ड० का०
तिथि शक १४६२ (१५४०-४१ ई०) है। पाण्डु० (९७, १८६९-७०) । २० अध्यायों में एक शूद्राह्निकाचारसार--वासुदेव के पुत्र गौड़ के राजकुमार बृहत् ग्रन्थ । गृह्य कृत्यों पर। आश्वलायनाचार्य, रघुदेव की आज्ञा से यादवेन्द्र शर्मा द्वारा। नो० न्यू० ऋग्वेद की पाँच शाखाओं, सर्वानुक्रमणी का उल्लेख (पृ० ३७३) ।
है। पाण्डु० की तिथि संवत् १६५३ (१५६६-६७ शूद्रीपद्धति।
ई०) है। बीकानेर (पृ० १५२), बड़ोदा (सं० शूद्रोत्पत्ति--शेषकृष्ण की शूद्राचारशिरोमणि में उल्लि- ८६३७) । खित।
शौनककारिकावली--से० प्रा० (सं० ५८९८) । शूद्रोद्योत-देखिए 'शूद्रधर्मोद्योत'।
शौनकगृह्य--विश्वरूप, अपरार्क, हेमाद्रि द्वारा व०। शैवकल्पद्रुम--अप्पय्यदीक्षित द्वारा।
शौनकगापरिशिष्ट-अपरार्क द्वारा व० (पृ०५२५) । शैवकल्पद्रुम---लक्ष्मीचन्द्र मिश्र द्वारा।
शौनकपञ्चसूत्र । शवतत्त्वप्रकाश।
शौनकस्मृति-दे० बी० बी० आर० ए० एस्. (पृ० शैवतत्त्वामृत।
२०८), जहाँ पद्य में एक बृहत् ग्रन्थ की चर्चा है; शैवतात्पर्यसंग्रह।
पुण्याहवाचन, नान्दीश्राद्ध, स्थालीपाक, ग्रहशान्ति, शेवधर्मखण्डन ।
गर्भाधानादि संस्कारों, उत्सर्जनोपाकर्म, बृहस्पतिशवरत्नाकर-ज्योतिथि द्वारा। हुल्श (सं० ७६)।
शान्ति, मधुपर्क, पिण्डपितृयज्ञ, पर्विणश्राद्ध, आग्रयण, शैववैष्णवप्रतिष्ठाप्रयोग।
प्रायश्चित्त आदि पर। आचारस्मृति, प्रयोगपारिजात, शैववैष्णवमतखण्डन।
बृहस्पति, मनु का उल्लेख है। शैवसर्वस्व--हलायुध द्वारा। ब्राह्मणसर्वस्व में उल्लि- शौनकी-नवग्रहों की पूजा पर । खित।
श्रवणद्वादशीनिर्णय-गोपालदेशिक द्वारा। शैवसर्वस्वसार--विद्यापति द्वारा। भवेशात्मज देवसिंह धाडकमल-नन्दपण्डित की श्राद्धकल्पलता में व०। के पुत्र शिवसिंह-सुत मिथिलानरेश पद्मसिंह की पाठकला-भवदेवशर्मा के स्मृतिचन्द्र का पाँचवाँ रानी विश्वासदेवी के आदेश से प्रणीत। १४००- भाग । कल्पत द्वारा उपस्थापित श्राद्ध की परिभाषा १४५० ई० के बीच । नो० (खण्ड ६, पृ० १-५)। दो हुई है-'पितृनुदिश्य द्रव्यत्यागो ब्राह्मणस्वीकारशैवसिदान्तदीपिका।
पर्यन्तम् ।' नो० (जिल्द १, पृ० २९९) । शैवसिद्धान्तशेखर--(या सिद्धान्तशेखर) नि० सि० में श्राद्धकलिका--(या श्राद्धपद्धति) रघुनाथकृत । भट्टउ०।
नारायण को नमस्कार किया गया है। कालादर्श, शेवसिद्धान्तसंग्रह।
धर्मप्रवृत्ति,निर्णयामृत, नारायणवृत्तिकृत्, जयन्तस्वामी, शैवसिवान्तसार।
हेमाद्रि, हरदत्त एवं स्मृतिरत्नाकर के उद्धरण पाये अवसिसान्तसारावलि-(या सिद्धान्तसारावलि) । जाते हैं। ड० का० (सं० ४२१, १८९१-९५ ई०) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org