Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 622
________________ धर्मशास्त्रीय प्रन्यसूची निर्णय, नामादिनिर्णय, यात्रानिर्णय नामक आठ अध्यायों में । लग० ११५९-६० ई० में प्रणीत (दे० इण्डियन एण्टीक्वरी, जिल्द ५१, १९२२, पृ० १४६१४७ ) ; हलायुध के ब्राह्मणसर्वस्व में व० । वराहमिहिर का नाम आया है और उनके ग्रन्थों से पर्याप्त उद्धरण लिये गये हैं। टी० प्रभा, कृष्णाचार्य द्वारा । टी० प्रकाश, राघवाचार्य द्वारा। (कलकत्ता में सन् १९०१ में मुद्रित ) ! टी० अर्थकीमुदी, गणपतिभट्ट के पुत्र गोविन्दानन्द कविकंकणाचार्य द्वारा । दे० प्रक० १०१ ( कलकत्ता में सन् १९०१ में मुद्रित ) | टी० दुर्गादत्त द्वारा प्रपंचसार (ह० प्र०, पृ० २१ एवं २५५ ) पर आधृत | टी० नारायण सर्वज्ञ द्वारा । टी० केशवभट्ट द्वारा। यह शुद्धिप्रदीप ही है । शुद्धिदीपिकावृत्ति -- मथुरानाथ शर्मा द्वारा । शुद्धि निबन्ध -- रुद्रशर्मा के पुत्र मुरारि द्वारा । लेखक के पितामह हरिहर मिथिला के भवेश के ज्येष्ठ पुत्र देवसिंह के मुख्यन्यायाधीश थे तथा उसके प्रपितामह जयधर लाढ़ महेश के मुख्य न्यायावीश थे । लग० १४५० ई० । शुद्धिनिर्णय - - उमापति द्वारा । शुद्धिनिर्णय --- गोपाल द्वारा । शुद्धिनिर्णय वाचस्पति महामहोपाध्याय सम्मिश्र द्वारा । दे० प्रक० ९८ । शुद्धिपञ्जी -- रघु० के शुद्धितत्त्व में व० । शुद्धिप्रकाश-- बनारस के (हरि) भास्कर द्वारा, जो त्र्यम्बकेश्वरपुरी वासी पुरुषोत्तमात्मज हरिभट्ट के तनुज आपाजिभट्ट के पुत्र थे । सवत् १७५२ (द्वीषुसप्तेन्दुवत्सरे), अर्थात् १६९५-९६ ई० में प्रणीत । दे० ना० (जिल्द २, पृ० १२६) जहाँ वृत्तरत्नाकर ( १७३२ संवत् में प्रणीत ) पर लेखक की टीका (सेतु) का उल्लेख है। शुद्धिप्रकाश-- रघु० के शुद्धितत्त्व में व० । शुद्धिप्रकाश-- छोटराय के आदेश से नरसिंह के पुत्र कृष्णशर्मा द्वारा । शुद्धिप्रदीप -- केशवभट्ट द्वारा । दे० शुद्धिदीप । Jain Education International १६१५ शुद्धिप्रदीपिका -- कृष्णदेव स्मार्तवागीश द्वारा । शुद्धिप्रभा - वाचस्पति द्वारा । शुद्धिबिम्ब-(-रुद्रधर के शुद्धिविवेक में व० । १४२५ ई० पूर्व । शुद्धिमकरन्द-- सिद्धान्तवाचस्पति द्वाया शुद्धिमयूख - नीलकण्ठ द्वारा। दे० प्रक० १०७१ जे० आर० घरपुरे द्वारा बम्बई में प्रका० । शुद्धिमुक्तावली - बंगाल में काञ्जिविलीयकुल के महामहोपाध्याय भीम द्वारा। आशौच पर नो० न्यू० (२, पृ० १०६): शुद्धिरत्न - अनूपविलास से लिया हुआ । शुद्धिरत्न -- दयाशंकर द्वारा । शुद्धिरत्न -- गंगाराम के पुत्र मणिराम द्वारा । शुद्धिरत्नाकर - चण्डेश्वर द्वारा । दे० प्रक० ९० ( पृ० ३६७) । शुद्धिरत्नाकर - मथुरानाथ चक्रवर्ती द्वारा । शुद्धिलोचन । शुद्धिवचोमुक्तागुच्छक माणिक्यदेव (अग्निचित् एवं पण्डिताचार्य उपाधिवारी) द्वारा । आशौच, आपद्धर्म, प्रायश्चित्त आदि पर ट्राएनिएल कैट०, मद्रास, पाण्डु० (१९१९-२२, पृ० ५४७४ ) । शुद्धिविवेक -- (१) लक्ष्मीवर के पुत्र एवं हलधर के - मदनरत्न का भाग । अनुज रुद्रधर द्वारा । दे० प्रक० ९६ । ( २ ) श्रीकराचार्य के पुत्र श्रीनाथ द्वारा। अन्त में शूलपाणि का उ० है । १४७५-१५२५ ई० । ( ३ ) अनिरुद्ध की हारलता का एक अंश । ( ४ ) शूलपाणि द्वारा; दे० प्रक० ९५ । शुद्धिविवेकोद्योत --‍ शुद्धिव्यवस्थासंक्षेप -- गौड़वासी चिन्तामणि न्यायवागीश द्वारा । स्मृतिव्यवस्थासंक्षेप का एक अंश; पाण्डु ० तिथि शक १६१० (१६८८-८९ ई०) । दे० नो० . (जिल्द ४, पृ० १३०) । लेखक ने तिथि, प्रायश्चित्त, उद्वाह, श्राद्ध एवं दाय पर भी ग्रन्थ लिखे हैं । शुद्धिव्यवस्थासंग्रह | शुद्धिसार --- (१) कृष्णदेव स्मार्तवागीश ( वन्द्यघटीय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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